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________________ विचारों की दृढ़ता कहते हैं कि नहीं बहराया है। ठाकुर सा० ने कहा-महाराज, यदि आपका कथन सत्य है, तो पात्र दिखला दीजिए। तब पीरचन्दजी ने कहा-ठाकुर सा०. आप गांव के मालिक है, आपके लिए सब मत वाले एक से हैं, अतः किसी के भी साथ पक्षपात नहीं होना चाहिए । ठाकुर वोले-महाराज यदि इन लोगों का कथन असत्य निकला तो हम इन लोगों को गांव से बाहिर निकाल देंगे । और हम आपके चरणों में पड़ेगे। पीरचन्दजी बोले-वैसे तो हम गुरु के सिवाय किसी को भी पात्र नहीं दिखाते हैं । किन्तु जव अवसर आ गया है, तब दिखा देते हैं । यह कहकर उन्होंने अपनी झोली नीचे रखी और मुख से कहा इष्ट देव, तार ! इसके पश्चात् जो झोली खोल कर पात्र दिखाये तो असली कम्मोदिनी चांबलो के भात से भरे हुए दिखे। उन्हें देखते ही सारी जनता अवाक रह गई और सब जती-मती ठंडे पड़ गये । ठाकुर सा० यह देखकर बढ़े विस्मित हुए और वोले-ऐसे ऊंचे महात्मा यदि एक फूंक मार देवें तो मेरा पता भी न चले 1 उन्होंने हाथ जोड़कर कहा-महाराज, हमसे भूल हो गई । पीरचन्दजी वोले—नहीं, तुम्हें इसका दंड भोगना पड़ेगा। ठाकुर के बहुत अनुनय-विनय करने पर उन्होंने कहा—ठाकुर सा०, यहां पर शिलापट्ट पर लिख दिया जावे कि आगे से मुहपत्ती वाले साधु की कोई वेइज्जती नहीं करेगा। यदि कोई करे तो उसे गाय और कुत्ते की सौगन्ध है । आजतक वहां पर यह शिला लेख मौजूद है । वन्धुयो, जब अपने भीतर ऐसे महात्मा सन्त थे, तब कोई भी उनका सामना नहीं कर सकता था और न धर्म का लोप या अपमान ही कर सकता था । किन्तु आज भीतर से सब खोखले है, अन्दर दम नहीं है। जिसके भीतर ऋद्धि-सिद्धि है और चमत्कार है तो चमत्कार को नमस्कार होता है। इन ऋद्धियों की सिद्धि तभी होती, जवकि मनुष्य अपने जप-तप और सिद्धान्त में सदा एक-सा दृढ बना रहे । बिना त्याग और तपस्या के कोई सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती है। एक वार माधव मुनिजी महाराज के सामने कुछ द्वेपी लोग आये और बोले कि मुख पर यह कपड़े की पट्टी क्यों बांध रखी है ? मुनिजी अधिकतर पल्लीवालों और आर्यसमाजियों में ही घूमते थे। मुनिजी ने कहाजीवों की यतना के लिए बांधी हुई है जिससे कि मुख में जीव नहीं घुस सके । यह सुनकर दूपी लोग बोले-जीव मुख में कैसे घुस सकता है। इतना कहते ही बोलने वाले द्वेषी के मुख में एक उड़ता हुआ जीव घुस गया ।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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