SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८८ प्रवचन-सुधा है कि आज आचार्यो का हर एक व्यक्ति सामना करने को तैयार हो जाता है। अन्यथा तेजस्वी और प्रतापी आचार्यों का मुकाबिला करना क्या आसान था। पूर्व समय के ऋषि-मुनि और आचार्य संव, समाज और धर्म के ऊपर संकट आने पर मर मिटते थे । और कभी पीछे नहीं हटते थे। तप का चमत्कार पूज्य रघुनाथजी महाराज वि० सं० १८१३ में सादड़ी को सर करने के लिए और जयमल जी महाराज बीकानेर को सर करने के लिये पधारे। मार्ग में दोनों सन्तों को बहुत कष्ट उठाने पड़े । जव वे जोजावर से बिहार करते हुए आगे बढ़े तो मार्ग भूल गए । पीरचन्दजी--जो जाति के दरोगा थे और वेले-वेले पारणा करते थे-~~-उनसे गुरुदेव ने कहा पीरचन्दजी! मार्ग में प्यास का परीपह अधिक है और मुझे भी प्यास लग रही है तो तुम गांव में जाओ और पानी लेकर आओ। वे दो बड़े पात्र लेकर चले। उस समय वहां पर जतियों का बड़ा चमत्कार था। उन्होंने विचार किया कि ये साधु ज्ञानऔर क्रिया से तो परास्त नहीं किये जा सकते हैं। अत. इन पर कोई लांछन लगा कर इन्हें परास्त किया जावे । जव वे पानी लेने के लिए गांव के पास पहुंचे तो समीप में जो भोमियों की पोल थी, वहां गये । भोमियों ने पूछा-महाराज, क्या चाहिए है ? पोरचन्दजी ने कहा-धोवन-पानी की आवश्यकता है । उन्होंने कहा-- आप रावले में पधारो। उस समय जतियों ने ठाकुर को सिखला दिया। उन्होंने एक पात्र मे तो दूध बहरा दिया और दूसरे पात्र में छांछ बहरा दिया । उस छाछ में एक मरी कीड़ी पड़ी थी, जो बहराते समय पीरचन्दजी को नजर नहीं आई। जब वे वहां से बाहिर निकले तो अनेक लोग इकट्ठे हो गये और बोले—महाराज, जैनधर्म को क्यों लजाते हो ? उन्होंने पूछाहम कैसे जैन धर्म को लजाते हैं ? तो वे लोग बोले-आप इन पात्रों में मांसमदिरा लेकर आये हैं ! पीरचन्दजी ने कहा-भाई, हम लोग तो इन वस्तुओं का स्पर्ण तक भी नहीं करते हैं, उनके लाने की बात बहुत दूर है। लोग बोले--पात्र दिखलाओ ! पीरचन्दजी ने कहा-मैं पान तुम लोगों को नहीं दिखा सकता । गुरु महाराज के सामने दिखाऊंगा। लोगों ने वहीं पात्र देखने का विचार किया, परन्तु उनके तपस्तेजस्वी शरीर के सामने हिम्मत नहीं हुई और अनेक लोग उनके साथ हो लिये। लोगों के कहने से ठाकुर सा० भी आ गये। लोगों ने उनसे कहा- आप इनके पात्र दिखला दो तो हम लोगों की बात रह जावे, क्योंकि लोग कहते हैं कि मांस-मदिरा बहराया है और ये
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy