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________________ रूप-चतुदर्शी अर्थात् स्वरूपदर्शन भाइयो, जिनेश्वर देव ने हमारे जीवन को सार्थक करने के लिए अनेकानेक उपाय बताये हैं । सरल उपाय भी बताये हैं और कठिन उपाय भी बताये हैं। जिन महापुरुषो में शाकि है और जो अपने जीवन को शीघ्र ही सार्थक करना चाहते हैं, उनके लिए मुनिधर्म का कठिन मार्ग बताया है और जिनमें शक्ति की हीनता है और धीरे धीरे जीवन को सार्थक करना चाहते है, उनके लिए श्रावक धर्म का सरल मार्ग बताया है । अब जिसकी जैसी और जितनी शक्ति हो, वह उसके अनुसार अपने जीवन को सार्थक कर सकता है। कल धनतेरस के विपय में आपके सामने प्रकाश डाला गया था। आज रूप चतुर्दशी है 1 रूप का अर्थ है- आत्म-स्वरूप । भगवान ने अपने स्वरूप को भली भांति से साक्षात्कार किया, देखा और जाना । पुन: जनता को दिखाने के लिए उन्होंने ज्ञान का दर्पण रख दिया। भगवान को अपना स्वरूप देखने के लिए सहस्रों कष्ट सहन करना पड़े तब कहीं जाकर उनको अपना रूप दिखाई दिया। परन्तु उन्होने हम सब के उपकार के लिए ज्ञान का उत्तम दर्पण सामने रख दिया और कहा कि आओ और देखो कि तुम्हारा रूप कैसा है ? भगवान के इस आमंत्रण को सुनकर अनेकानेक लोग उनके पास गये । किन्तु कितने तो समवसरण की शोभा को देखने में ही मस्त हो गये, कितने ही वहां के वन-उपवनों की सैर करने में लग गये, कितने ही
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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