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________________ प्रवचन-सुधा पर स्थिर और अचल रहता है, फिर उसका कभी विनाश नहीं होता है । इसलिए ज्ञान के ममान अन्य कोई भी लौकिक धन जीव को सुख का कारण नहीं हैं । यह ज्ञानरूपी धन परम अमृत है जो कि अनादिकाल से लगे हुए जन्म, जरा और मरणरूप रोगो को नाश करने वाला है ! इसीलिए ज्ञानो जन और आध्यात्मिक पुरुप अनादिकाल से वधे हुए कर्मों को दूर करके शुद्ध ज्ञानस्वरप को पाने के लिए सदा प्रयत्नशील रहते हैं । आज का दिन हम उसी अभीप्ट धन को प्राप्त करने के लिए प्रेरणा देता है। ज्ञानधन की वर्षा यहा पर यह प्रश्न किया जा सक्ता है कि प्रत्येक माम के दोनो पक्षो मे तेरम का दिन आता है, फिर आज के दिन को ही 'धनतेरम' क्यो कहा? इयका उनर यह है कि इन अवसर्पिणी काल के चौथे थाने के अन्त मे जैनशामन के उन्नायक और महान प्रर्वतक भगवान महावीर स्वामी हुए हैं। उन्होंने बात्मा के परम धन केवलनान को प्राप्त कर तीम वर्ष तक धर्म की दिन्य देगना दी और माधु-माध्वी, श्रावक श्राविकाओ के भीतर धर्म का सचार करते रहे। उस समय सारे संसार में जो अज्ञान और मिथ्यात्व का प्रचार हो रहा था, लोग पाखो मे फंस रहे थे, दीन-निरपगध प्राणियो को यनो मे होम रहे थे और देवी-देवतानो पी बलि चटा रहे थे तब भगवान महावीर ने अपनी सहज मधुर वाणी मे लोगो को धर्म का सत्य और सुखकारक मार्ग बनाया जिस पर चल करके अनेक प्राणियो ने अपना उद्धार दिया। उनकी दिव्य देशना त्प वचन-गगा मे अवगाहन कर महा मिथ्यात्वी गौतम जैसे पुल्प भी उनकी धर्म-ध्वजा को फहराने वाले बन गये । जब भगवान ने देखा कि जब हमारे आयुष्य के केवल दो दिन ही शेष रह गये है, नत्र आज के दिन उन्होने अपने आज तक के उपदेशो से उपसहार रूप अपृष्ट जागरणा प्रारम्भ की। इसके पूर्व तो जय को जिज्ञासु व्यक्ति पूछता था, तब भगवान उनर देते थे। किन्तु बाज अपने आयुष्य का अन्तिम समय समीप आया जान कर उन्हाने विना किनी में पूछे ही उपदेश देना उचित समझा। और गानधन भी अपूत्र वषा की। उन्होने कात्तिककृष्णा अमावस्या के प्रभातमाल त निर्माण हान नर जो यि दशना दी, वह उत्तराध्ययन के नगम ने प्रसिद्ध हुई। भगवान ने अपने तीस वर्ष में रंगनाकाल मे चरणानुयोग द्रव्यानुनोग, गणितानुयोग और धर्मकवानुयोगम्प चार अनुयोगा पे द्वारा उर दिया । जिनका भारी विन्नार द्वादशागवाणी कप में माज भी कार । आज के दिन नाबान न उत्त नाग जनयोगी पसतार रप
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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