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________________ समता और विषमता १३३ वस्तु किसको प्यारी लगती ? जो कि बाल स्वभाव के होते हैं। जैसे बालक किसी भी वस्तु को देखते ही उसे पाने के लिए मचल जाते हैं। इसी प्रकार जिन्हें आत्म-बोध नहीं, वे ही पर वस्तु की अभिलाषा करते हैं। किन्तु जिन्हें आत्म-ज्ञान हो जाता है, उन्हें अपनी आत्मा के सिवाय कोई दूसरी वस्तु प्रिय नहीं लगती है। समभावी व्यक्ति दूसरों के विशिष्ट गुण देखकर उन्हें अपनाने का प्रयत्न करता है और अपनी कमियों को दूर करने का प्रयत्न करता है। इसके विपरीत विषमभावी व्यक्ति सोचता है कि यदि मैं विपम दृष्टि हं-काना ई—तो औरों की भी एक-एक आंख फट जाय तो अच्छा होसब मेरे समान ही हो जायें तो फिर कोई मुझं काना नहीं कह सकेगा। विषमभावी सदा पराया उपकार करने की सोचता है, तो समभावी परउपकार करने की भावना रखता है। आप लाखों का व्यापार करते हैं और महलों में रहते हैं। परन्तु दूसरी ओर एक गरीब व्यक्ति हैं झोंपड़ी या झुग्गी मे रहता है और दो आना के रंगीन कागज खरीद करके उनसे चिड़िया, हार, फूल आदि और नाना प्रकार की आकर्षक सुन्दर वस्तुएँ बना करके बाजार में वेचता है तो उन्हें देखते ही बच्चे दौड़कर उन्हें लेते है । वह सुन्दर बनाकर लाता और अपने परिश्रम और बुद्धिचातुर्य में दो आने के रुपये बनाकर वापिस अपनी झोंपडी पर लौटता है । वह चोरी करके नहीं ले जाता है किन्तु अपने परिश्रम से कमाकर ले जाता है और इस प्रकार वह अपनी बुद्धि का विकास करतेकरते एक बहुत बड़ा कलाकार हो जाता है और एक दिन ऐसे ऐसे यंत्रों का आविष्कार करने लगता है कि यंत्रोत्पादक और यंत्र-निर्माता भी उन्हें देखकर आश्चर्य-चकित हो जाते हैं । तब वह कलाकार यश के साथ धन भी कमाता है और लखपति बन जाता है । परन्तु कोई विषमभाबी मनुष्य आज लखपति है और उसकी अच्छी चलती हुई दुकान है अथवा उसके पास कोई बहुमूल्य वस्तु है । यदि वह उसकी ठीक प्रकार से सार-संभाल नहीं करता है और दूसरों के छिद्रान्वेपण और दोप-दर्शन करने में ही अपना समय बिताता है, तो एक दिन उसका व्यापार चौपट हो जाता है और निर्धन बन जाता है-- इसरो का मुंहताज हो जाता है और फिर अवैध उपायों से धन कमाने की सोचता है । इसी प्रकार किसी अल्पज्ञानी किन्तु समभावी व्यक्ति को धर्म तत्व प्राप्त होता है, तो वह उत्तरोत्तर अपनी उन्नति करता हुआ एक दिन महान् ज्ञानी और धर्मात्मा पुरुप बन जाता है और संसार में नाम चारों ओर फैल जाता है । विन्तु यदि विषमभावी व्यक्ति को धर्म तत्व प्राप्त होता है और वह दिन मे तो इधर-उधर गप्पें लगाता रहता है और रात में रोशनी करके
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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