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________________ उत्साह ही जीवन है ११५ आग्रह करते हैं, तो एक प्रबन्ध कर दीजिए कि मेरे पास बुढापा न ावे, रोग न आवे, और मौत न आवे | वस, आप इन तीनो के नही आने की व्यवस्था कर देवे, तो में घर को छोड़कर नहीं जाऊँगा । राजा साहब भी मौजूद है और आप सब पच लोग भी उपस्थित है। कहावत है कि पचो मे परमेश्वर रहता है और राजा साहब तो परमेश्वर हैं ही। जब दो-दो परमेश्वर मेरे सामने उपस्थित है, तो दोनो जने ही मिलकर जरा, रोग और मौत से वचने का प्रबन्ध कर दो । फिर मैं घर छोडकर कभी नहीं जाऊगा । धन्नाजी की यह बात सुनकर राजा ने शिर नीचा कर लिया और पच लोग भी अवनत-मुख रह गये । धन्नाजी बोले-आप लोग चुप क्यो रह गये हैं ? तब सब लोग एक साथ बोले- धन्नाजी, उन तीन वाता के नहीं आने का प्रवध करने मे हम लोग असमर्थ है। तब धनाजी ने कहा- यदि ऐसी बात है, तो फिर आप लोग मुझे उन तीनो दु खो से छूटने के लिए क्यो रोकते हैं ? मैंने तो इन तीनो को जड-मूल से नाश करने का निश्चय किया हे । अन्त मे सबने उनकी माता से कहा--अब आप के ये लाडले वेटे घर म रहने वाले नही हैं। इसलिए अव इन्हे सहर्प साधु बनने की आज्ञा प्रदान करो। भाई, जिसके हृदय मे उत्साह प्रकट हो जाता है, फिर उसे ससार का त्याग करते देर नही लगती है। ___ भाइयो परिग्रह किसको माना है ? शास्त्रकार कहते है कि 'मुच्छा परिगहो युत्तो' अर्थात् भगवा ने मुळ को ममता भाव को परिग्रह कहा है । रत्नों से जडे हुए सोने के महलो मे रहते हुए भी यदि उनमे ममता नहीं है तो उसे अपरिग्रही कहा है। और जिसके झोपड़ी रहने को भी नहीं है, कवल फूट ठोकरे और फटे पुराने चीथडे ही पहिनने को है, यदि ऐसे मिखारी की उन पर मूर्छा और ममता है, तो उसे परिग्रही कहा है। एक सन्त गोचरी के लिए किसी घर मे प्रविष्ट हुए । उसकी जर्जरित दशा देखकर करुणा से द्रवित हो उठे। टूटा सौ छप्पर घर, बिल हैं अनेक ठौर, नौल कौल मूसा जाणी जीवा ही समेत है । खाट एक पायो उणो, गूदडो विछायो जूनो, चाचड माकड़ जू बा लीखा ही समेत है। काणी सी कुरूपा, देह ऐसी प्रिया सेती नेह, खाडी हाडी वांडो चाटू मौजा मान लेत है । ताही मे अलूझ रह्यो, माने ना गुरु को कह्यो, मान को मरोड्यो, जीव, तिरन को न वैत है ।।
SR No.010688
Book TitlePravachan Sudha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year
Total Pages414
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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