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________________ स्तवनावली । ७३ अ० ॥ २ ॥ संध्या रंग अनंग संग त्यूं, जोवन धन क्यों गहीये । क्यों जरम मूलाने, सुपनसीमाया इसमें ना वहीये ॥ ० ॥ ३ ॥ आतम में खोज पियारे, बाहिर नटकते ना रहिये । Than सब त्यागी, पासके चरण कमलमें जा [हीये ॥ ० ॥ ४ ॥ स्तवन बत्री शभुं । ॥ राग बिहाग || सिमर सिमररे सुज्ञानी जिनंद पद० ॥ टेक ॥ अजर अमर सब अलख निरंजन, जंजन कर्म कठानी ॥ जि० ॥ १ ॥ चिदानंद घन अजर अमूरत, सुरत त्रिभुवन मानी ॥ जि० ॥ २ ॥ शांति सुधारस जिनवर पारस, आरस लोक निशानी ॥ जि० ॥ ३ ॥ कोटले नगरे बिंब बिराजे, यातम अनुभव दानी ॥ जि० ॥ ४ ॥ TO SU स्तवन तेत्रीशभुं । ॥ राग इमन अथवा पीलु || तोरी सूरतिकी जाउं बलिहारी, मानुं बबि समता मतवारी || तो० ॥ टेक ॥ १०
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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