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________________ स्तवनावली | ४९ करी, व क्युं उलटी रीत धरी । तम हित जग लाज टरी, निज जुवन सी धावोरे । आवो० ॥ ३ ॥ स्तवन चोथुं । ॥ राग बिहाग ॥ वारक है शिवादेवी के नंदन करम कठिन डुख दाइ, मार धारा दूर करी हे स्याम रूप दरसाइ सखीरी ॥ वा० ॥ १ ॥ मदन कदन शिव सदन के दाता, हरण करन दुखदाइ ॥ करम नरम जग तिमिर हरनको अजर अमर पद पाइ सखीरी ॥ वा० ॥ २ ॥ जडुपति वदन करत अनंदन, स्मत्र चार बितराइरी ॥ अमम " मम जिन रूप सरीसो, जिनवर पद उजपाइ सखीरी ॥ वा० ॥ ३ ॥ राजिमती निज वनीता तारी, नवनव प्रीति निजाइरी ॥ हलधर रथकर मृग तुम नामे, ब्रह्मलोक सुर थाइ सखीरी ॥ वा० ॥ ४ ॥ गजसुकुमाल लाल तुम तार्यो, नववन सगरे जराइरी ॥ ए उपगार गिनु जग केता, करुणा सिंधु सहाइ सखीरी ॥ वा० ॥ ५ ॥ पिए निज कुटुंब उद्धार नाथजी, तारक विरूद धराइरी ॥ ए गुण वर नरनमें राजे, इनमें कां
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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