SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत- श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन ( भोलुडारे हंसा, ए देशी ) नयरी अयोध्यारे माता मंगला, मेघ पिता जस धीर । लंबन क्रौंच करें पद सेवना, सोवन वान शरीर ॥ १ ॥ मुज मन मोरे सुमति जिणेसरे, न रुचे को पर देव । खि खिए समरुरे गुण प्रभुजी तणा, ए मुज लागीरे देव ॥ मु०॥२॥ सें धनु तनु आयु धरें प्रभु, पूरव लाख चालीश । एक सहसशुं दीक्षा आदरी, विचरे श्री जगदीश ॥ मु० || ३ || समेत शिखर गिरि शिव पदवी लही, त्रण लाख वीस हजार। मुनिवर पण लख प्रजुनी संयती, त्रीश सहस वली सार ॥ मु० ॥ ४ ॥ शासनदेवी महाकाली जली, सेवें तुंबरु यद । श्रीनयविजय बुध सेवक जणें, होजो मुज तुज पद ॥ मु० ॥ ५ ॥ २४४ न श्री पद्मन जिन स्तवन । ( ढाल - झांझरी आनी ) कोसंवी नयरी नलीजी, धर राजा जस तात । मात सुसीमा जेहनीजी, लंकून कमल विख्यात । पद्मप्रश्युं लाग्यो मुज मन रंग ॥ १ ॥
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy