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________________ चोविगी । २२७ गणि आव्यु धरणीराज ॥ शेण ॥ २ ॥ अलवे में पाम्यो तेहवो नाथ, तेहथी हूं निश्चय हुयोरे सनाथ। वाचक जश कहे पामी रंग रेली, मानुं फलिय अंगणमे सुरतरु वेली ॥ शे० ॥३॥ श्रीसुमतिनाथ जिन स्तवन । (धरीआलो घाट, ए देशी) सुमतिनाथ दातार, कीजे अोलग तुम तणीरे । दीजे शिवसुख सार, जाणी ओलग जग धणीरे ॥ १॥ अखय खजानो तुज, देतां खोमी लागे नहीरे । किसि विमासण गुज्ज, जाचक थाके उन्ना रहीरे ॥२॥ रयण कोम तें दीध, ऊरण विश्व तदा कियोरे । वाचक जश सुप्रसिझ, मागे तीन रतन दियोरे ॥३॥ श्रीपदमप्रन्न जिन स्तवन । ( आज अधिक भावे करी, ए देशी ) । पदमप्रन जिन सांजलो, करे सेवक ए अरदास हो। पांति वेसारियो जो तुम्हें, तो सफल करयो श्राश हो ॥ प० ॥ १ ॥ जिन शासन पांति तें ठवी, मुज थाप्युं समकित बाल हो। हवे नाणा खमि खमि कुण खमे. शिव मोदक
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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