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________________ २१८ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत- तेहज ज्ञान ने चारित्र तेह बे जी । तेहथी रे जाए सघलां पाप, ध्यातारे ध्येय स्वरूप होयें पबेजी ॥ ४ ॥ देखीरे अदभुत ताहरुं रूप प्रचरिज नविकरूपी पद वरेजी । ताहरी गत तुं जाणे हो देव, समरण जजन ते वाचकजश करेजी ॥५॥ श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन । साहेबांहे कुंथु जिणेसर देव, रतन दीपक अति दीपतो हो लाल । साहेबांहे मुज मन मंदिर मांहे, वे जो रिबल जी पतो हो लाल ॥ १॥ सा० मिटे तो मोह अंधकार, अनुभव तेजे कलहले हो लाल । सा० धूम कखाय न रख, चरण चित्रामण नवि चले हो लाल ॥ २ ॥ सा० पात्र कर्ये नहि देव, सूरज तेजे नवि तुपे हो लाल । सा० सर्व तेजनुं तेज, पहेली वा पछे हो लाल ॥ ३ ॥ सा० जेह न मरुतने गम्य, चंचलता जे नवि लहे हो लाल । सा० जेह सदा वे रम्य, पुष्टगुणे नवि कुंश रहे हो लाल ॥ ४ ॥ सा० पुदगल तेल न खेप, तेह न शुद्ध दशा दहे हो लाल । सा० श्रीनय विजय सुशीश, वाचक जश एपि परे कहे हो लाल ॥ ५ ॥ - १ टीवी । २ शत्रु बल । ३ पवन | ४ मनोहर | दुर्बल |
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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