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________________ चोविगी । २१७ सेवकनां तिम दुःख गमावे, प्रभु गुण प्रेम स्वजावे ॥ था० ॥ ३ ॥ व्यसन उदय जलधी अणुहारे, शशिनो तेज संबंधे। संबंधे कुमुद - गुहारे, शुद्ध स्वभाव प्रबंधे ॥ था० ॥ ४ ॥ देव अनेरा तुमर्थी ठोटा, थे जगमां अधिकेरा । जश कहे धर्म जिणेसर याशुं दिल मान्या हे मेरा || o || | || 400 श्री शान्तिनाथ जिन स्तवन । ( घोडलियो मुक्यो सरोवरियारी पाल, ए देशी ) धन दिन वेला धन वली तेह, अचिरारो नंदन जिन जंदी नेटशुं जी | लहेशुंरे सुख देखी मुखचन्द, विरह व्यथानां दुख सवि मेटगुंजी ॥१॥ जाप्योरे जेणे तुज गुण लेश, वीजारे रस तेहने मन नवि गमेजी । चाख्योरे जेणे मी लवलेश, वाकस बुकस तस न रुचे किमेजी ॥२॥ तुज समकित रस स्वादनो जाए, पाप कुमतने बहु दिन सेवितं जी । सेवे जो करमने योगे तो हि वांठे ते समकित अमृत धुरे लिख्युं जी ||३|| ताहरु ध्यान ते समकित रूप, ६ भरती आयो । २ पोयं । ३ ज्या | ४ अमृत ।
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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