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________________ १९४ श्रीमदुदयरत्नजी कृत- यरत्न प्रभु पर उपगारी, परमानंदोरे ॥वि० ॥३॥ श्री संजवनाथ जिन गीत | दीन दयाकर देव, संजवनाथ दीगेरे | साकरने सुधा थंकी पण, लागे मीठगेरे ॥ दी० ॥ १ ॥ क्रोध रह्यो चंगालनी परे, डूर धीठोरे । अज्ञान रूप अंधकारनो हवे, वेग नी ठगेरे ॥ दी० ॥ २ ॥ जली परे जगवंत मुने, जगते तूठगेरे । उदय कहे माहरे आज डू, मेह वूठोरे ॥ दी० ॥ ३ ॥ ~ श्री अभिनंदन जिन गीत | सिद्धार्थाना सुतना प्रेमे, पाय पूजोरे । दुनिया मांहि एह सरिखो, देव न डूजोरे ॥ सि० ॥ १ ॥ मोहरायनी फोज देखी, कां तूमे धूजोरे । अनिनंदनने आ रहीने, जोरे जोरे ॥ सि० ॥ २ ॥ शरणागतनो ए अधिकारी, बूको बूजोरे । उदय प्रभुशुं मली मननी, करीये गुंजोरे ॥ सि० ॥ ३ ॥ श्री सुमति जिन गीत | सुमतिकारी सुमतिवारु, सुमति सेवोरे । कु १ खुट्यो । २ गुझ=झानी वातो ।
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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