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________________ AN १८४. श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- चली गिरनारी । राजुल नेमी संगरे ।। तुंग ॥६॥ वीरविजय कहे नेम ने राजुल | पाये सुख अनंगरे । तुं ॥७॥ ॥ अथ गुंदली ॥ ॥ सेवो नवियण जिन त्रेवीसमोरे, ए देशी । गुरु मारा गाम नगर पुर विचरंता रे । बहु शिष्य ने परिवार । ज्ञान अमृत जले करी सींचतारे। हिंसता नविक कमल संघात । हुं बलिहारी ए गुरुराजनीरे ॥ आंकणी ॥ १॥ अवसर क्षेत्र फरसना करीरे । पालीताणा नगर मोकार । सिझदेत्र सिकाचल नेटवारे । आव्या आतमराम अणगार ॥ हुं० ॥२॥ पंच समिति तिन गुप्ति बिराजतारे । धरता धरमतणुं एक ध्यान । हरता मोह दशा महा फंदनेरे । करता ज्ञान ध्यान एक तान ॥ हुँ ॥३॥ पंचम कालमें कुगुरु सोहलारे । दोहला सुगुरु तणा देदार । पामी नव्य जीव तुमे सजिलोरे। नगवती सूत्र तो अधिकार ।) हुँ । चातकने मन जलधर चाहनारे । कामनीने मन कंथनी चाह । तेम मारा
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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