SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सज्झायो । १७९ सनतकुमाररी । जिनमें रोग नये निज तनमें । देखो कर्मकथा बरी ॥ घ॥२॥ देखत देखत सबही बिनसत । तन धन अथिर स्वजावरी । ऐसी नावना नावतही मन । बोम लियो वैराग्यरी॥ ॥३॥ सच्चा त्याग किये बिन कबहु । पावत नहीं नव पाररी । पर परिणती त्यागो चेतन । वीर वचन चित्त धाररी ॥ घ० ॥ ४॥ 8 अथ सज्झायो मुनिगुण सज्जाय। हां देखो मुनिवर ममता मारी । नये पंच महाव्रत धारी रे ॥ हां देखो ॥ आंकणी ॥ हिंसा जुड़ चोरीने वारी । ब्रह्मचर्य व्रत धारी रे । वाह्यान्यंतर ग्रंथी निवारी । लोग तरसना गरी रे ॥ हां दे ॥१॥ तप शोषित तनु कृशधारी । जगजन आनंद कारी रे । पूजक निंदक दो शमकारी । जजते उग्र विहारी रे ॥ हां देख ॥२॥ राग वेषकी परिणती वारी । परिसह · फोजकुं मारी रे । गुणश्रेणि गुण स्थानक धारी। ध्यानारूढ नय वारी रे ॥ हां दे ॥३॥ शोक
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy