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स्तवनावली |
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राया ॥ कणी ॥ प्रजु जयादेवीके जाया । वसु रायके वंस दीपाया || मिल चौसठ इंद्रे गाया । में पुन्ये दरिस पाया ॥ श्री० ॥ १ ॥ प्रभु पंच कल्याणिक जाया । च्युति जन्म वैराग्य जराया ॥ वर नाण परमपद पाया। मंगल चंपामें गवाया ॥ श्री० ॥ २ ॥ कल्याणिक भूमि जाणी । तिरथ में चंपा गवाणी । नगरी में वन गई राणी । ए महावीरकी वाणी ॥ श्री० ॥ ३ ॥ तीरथकी महिमा जाणी । संघ यात्रा करे गुणखाणी । भूमरुल महिमा गवाणी । तीरथ नेटो जी प्राणी ॥ श्री० ॥ ४ ॥ यात्रा करनेकुं आवे | देस पूरवसे संघ ब्यावे । ताकी सोना कहुं में जावें । सुतां श्रद्धा चित्त आवे ॥ श्री० ॥ ५ ॥ शहेर मुर्शिदाबाद कहाया | जिहां वसे धनपतसिंह राया । राणी मेनाकुमरी जाया । सुत महाराज बाहादुर राया ॥ श्री० ॥ ६ ॥ मंत्रि बुद्धी के बलिया । गोपीचंद बाबु मलिया | दुल्लास बाबु मति जागी। संघ नक्ति करे वरुजागी ॥ श्री० ॥ ७ ॥ यात्राकी मरजी कीनी । तव गुरुसें आज्ञा लिनी । संघपति तिलक पढ़ लीया । सूरि विजयकमलने दीया ॥ श्री० ॥ ८ ॥ संघवीकी सोना नारी ।
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