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१६४ श्रीमद्वीरविजयोपाध्याय कृत-- श्रीअंबालाममन श्रीसुपास जिन स्तवन ।
क्यु नहो सुनाई स्वामी। ऐसा गुना क्या कीया ॥ आंकणी ॥ औरोंकी सुनाई जावे । मेरी वारी नाही आवे । तुम बिन कोन मेरा, मुजे क्युं जुला दिया ॥ क्युं ॥ १ ॥ नक्त जनों तार दीया, तारवेका काम कीया। बिन नक्ति वाला मोंपे । पदपात क्युं लिया ॥ क्युं ॥ ॥ राव रंक एक जानो। मेरा तेरा नहीं मानो । तरन तारन ऐसा। बिरुद धार क्युं लिया ।क्यु०॥३॥ गुना मेरा बद दिजे । मोपें एति रहेम कीजे । पक्काही जरोंसा तेरा । दिलोमें जमा लिया ॥ क्युं ॥४॥ तुही एक अंतर जामी । सुना श्री सुपास स्वामी । अब तो आशा पुरी मेरी । कहेना सो तो कह दीया ॥ क्युं ॥ ५ ॥ शहेर अंबाले जेटी । प्रजुजीका मुख देखी। मनुष्य जनमका लाहा । लेना सो तो ले लीया ॥ क्युं ॥६॥ जन्निसो बासठ बबिला। दीपमाल दिन रंगिला॥ कहे वीरविजे प्रजु । नक्तिमें जगा दिया ॥क्युंगा॥
॥श्रीचंपामंमन वासुपूज्य जिन स्तवन ।
चंपा ममन सुखदाया । श्री वासुपूज्य जिन