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________________ पदा । दश्स करहो हंस वंस निकस आश् सरी॥ ऐ० ॥३॥ ऐसी आवे मन मेरे बदन वन बेद नाएं। प्रगटे आनंद कंत जारी वाली संसरी ॥ ऐ० ॥४॥ - - पद चोयुं। ॥ राग-वसंत ॥ ॥ हमकुं नम चले वन माधो, ए देशी ॥ ___ अब क्युं पास परों मनहंसा, तुम चेरे जिननाथ खररे । जार मार ममता दृढगन, राग स्निग्ध अन्यंग करेरे ॥ अब० ॥ १॥ नव तरु मार ताण विस्तरीया, मोह कर्म जम मूल जोरे। क्रोध मान माया ममतारे, मतवारे चहुंकु न चोरे ॥ अब० ॥२॥पास परन वामारस राच्यो, खांच्यो कर्म गति चार पर्योरे ॥ राग द्वेष जिहां नये रखवारे, जव वन सघन जंजीर जोरे ॥ अब० ॥३॥ पूरण ब्रह्म जिनेऽकी वानी, करण रंधमें शब्द पर्योरे । अनुजव रस नरी बीनकमें उड्यो, आतमराम आनंद नोरे ॥ अब० ॥४॥
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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