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________________ १०६ श्रीमद्विजयानंदसूरि कृत- घर तोरे ॥ तुं० ॥ १ ॥ श्बा रोधन तप्त ‍घट, जरत यो घांस जलो रे । समता सीतलता मन माली, गुण स्थानक शुद्ध श्रेणि चलो रे ॥ तुं० ॥ २ ॥ पावस भूमि चेतनकी शुद्ध, वेरत न चित्त बुधर रे । वरसत जन वन शुद्ध जरीया, जरीय चैन वनबाग वर रे || तु० ॥ कुमता ताप मीटी घट अंदर, मन बंदर सव शांत नये रे । अनुज शांतिकी बुंद परी घट, मुक्ताफल शुद्ध रूप थये रे ॥ तुं० ॥ ४ ॥ तमचंद आनंद जये तुम, जिनवर नाद अनंग सुरुयो रे ॥ सगरे संग त्याग शिव नायक, दायक जाव सुजाव थुयो रे ॥ तुं० ॥ ५ ॥ ~www पद त्रीजुं । ॥ राग वरवा ॥ ऐसे तो विषम बाजी । पियाको उन्माद जागी ॥ ऐसी आवे मन मेरेकी जाय घ ध्वसरी ॥ ऐ० ॥ १ ॥ मोहको सिरोद सुन कूदत इकारी । नादव ज‍ वावे तो हरन लागे हंसगइरी ॥ ऐ० ॥ २ ॥ चितहूं की सार गइ मारहूंने तार
SR No.010687
Book TitleAtmanand Stavanavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherBabu Saremal Surana
Publication Year1917
Total Pages311
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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