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________________ २२ पूर्व-पश्चात् कृत्य का न हुआ समालोचन सही । तो दुबारा प्रतिकमे, व्युत्सृष्ट तन, सोचे यही ||११|| वृत्ति जिन ने असावद्य हो । कही मुनि के लिए । मोक्ष साधनभूत साधु-शरीर धारण के लिए ॥६२॥ ध्यान निज नवकार से पारे व जिन - सस्तव करे । कुछ करे स्वाध्याय फिर विश्राम कर निज श्रम हरे ||१३|| लाभार्थी विश्राम समय मे करे सुचिन्तन यो हितकर । तार दिया यो मानूँ यदि मुनिगण जो कृपा करे मुझ पर । * प्रेम से तव साधुत्रो को निमन्त्रित क्रमश. करे । जो करे स्वीकार उनके साथ में भोजन करे ||५|| यदि न स्वीकृत हों तदा श्रालोक-भाजन मे सही । यत्न से खाए अकेला गिराए नीचे नही ||१६|| तिक्त, कटुक व कसैला, खट्टा मधुर, लवणमय जो मिलता हो प्रन्यार्थ प्रयुक्त उसे मुनि मधु घृत सम लख प्रहरता । *रस, नीरस, असूपित' - सूपित' व गीला शुष्क हो । 1 मथु या कुल्माष प्रासुक स्वल्प बहु जो प्राप्त हो ॥६८॥ नही निन्दा करे उसकी मुधाजीवी मुनि कदा | दोष-वर्जित मुधालब्ध अशन करे सम-रत सदा ||६|| युग्मम् मुधादायी सुदुर्लभ, दुर्लभ मुधाजीवी अरे । मुधादायी मुधाजीवी उभय सद्गति सचरे ॥१००॥ १. व्यजन रहित 1 २. व्यज-सहित । f दशवेकालिक -
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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