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________________ १६० उत्तराध्ययन दश सहस्राब्द जघन्य स्थिति, अधिकाधिक कापोता की जान । ___पल्योपम' के असंख्यातवे भाग अधिक सागरत्रय मान ॥४१।। जघन्य पल्य असख्य विभाग अधिक सागरत्रय, नील-स्थिति है। पल्य असख्य विभाग अधिक दश सागर की उत्कृष्ट कथित है ॥४२॥ जघन्य पल्य असख्य विभाग अधिक दश सागर स्थिति वर्णित है।' तीन तीस सागर उत्कृष्ट कृष्ण लेश्या की स्थिति निर्णित है ।।४३।। यह है 'नारक जीवो के लेश्यानो की स्थिति का वर्णन । । यहाँ करूंगा अब तिर्यग् नर सुर लेश्या-स्थिति का वर्णन ।।४४।। छोड शुक्ल लेश्या को नर पशुओ मे जितनी लेश्या होती। इन सब की उत्कृष्ट जघन्यतया स्थिति अतर्मुहूर्त होती ।।४।। जघन्य अतर्मुहूर्त मान शुक्ल लेश्या की स्थिति पहचान। नौ वत्सर कम कोटि पूर्व की स्थिति उत्कृष्ट कही मतिमान ।।४६।। किया गया है यह तिर्यग् नर लेश्यानो की स्थिति का वर्णन। " - __ यहाँ, करूंगा अब देवो की लेश्याओ की स्थिति का वर्णन ॥४७॥ जघन्य दश हजार वर्षों की स्थिति, उत्कृष्टतया पहचान । . कृष्णा, की है पल्योपम के असख्यातवे भाग प्रमाण ॥४८॥ कृष्णोत्कृष्टाऽवधि से समयाधिक नील-स्थिति जघन्य जानो। :-- पल्य-असख्य भाग जितनी उत्कृष्टतया स्थिति है पहचानो॥४६॥ नीलोत्कृष्टाऽवधि से समयाधिक कापोता की जघन्य है। ---- पल्य असख्य भाग जितनी उत्कृष्टतया स्थिति यहाँ गण्य है ।।५०।। भवनाधिप व्यन्तर व ज्योतिपी, वैमानिक देवो की सत्वर । -- - तेजो लेश्या की स्थिति का अब वर्णन यहाँ करूँगा सुन्दर ॥५१॥ जघन्य एक पल्य की स्थिति तेजो की, अब उत्कृष्ट विधान। -- पल्योपम के असख्यातवें भाग अधिक दो सागर मान ॥५२॥ तेजो लेश्या की कम से कम दश हजार हायन की स्थिति है। पल्य असख्य विभाग अधिक दो सागर की स्थिति अधिकाधिक है ।।५३॥ तेजो की उत्कृष्ट अवधि से समयाधिक कम से कम जान । पद्मा की उत्कृष्ट अवधि दश सागर अतर्मुहुर्त मान ॥५४॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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