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________________ सोलहवाँ अध्ययन ब्रह्मचर्य समाधि स्थान 1 एम प्रज्ञापक आचार्यों ने यो' कहा, सुना मैंने आयुष्मन् 1 ब्रह्मचर्य सुसमाधि स्थान दश, स्थविरों ने बतलाए शुभ मैन ॥१॥ जिन्हे श्रवण कर निश्चय कर, सयम-सवर - सुसमाधि बहुत हो । विचरे मुनि नित गुप्त ब्रह्मचारी, गुप्तेन्द्रिय अप्रमत्त हो ॥ २ ॥ कहे कौन से ? वे दस ब्रह्मचर्य सुसमाधि स्थान महा । जिन - प्रवचन मे निश्चय स्थविर भदन्तो ने है जिन्हे कहा || ३ || जिन्हे श्रवणकर निश्चयकर सयम - स्वर - सुसमाधि बहुल हो । विचरे मुनि नित गुप्त ब्रह्मचारी गुप्तेन्द्रिय अप्रमत्त हो ॥४॥ ये हैं वे दस ब्रह्मचर्य सुसमाधि स्थान प्रति विशद यहा । 4 जिन - प्रवचन मे निश्चय गणधर स्थविरो ने है जिन्हे कहा ॥ ५॥ उन्हे श्रवण कर निश्चय कर सयम - संवर - सुसमाधि बहुल हो । विचरे मुनि नित गुप्त ब्रह्मचारी गुप्तेन्द्रिय अप्रमत्त हो ||६|| यथा - नित्य एकान्त शयन-आसन-सेवी होता निर्ग्रन्थ । स्त्री- पशु - पडक सहित शयन आसन का सेवन न करे सत ॥७॥ यह क्यो ? तब आचार्य कह रहे, स्त्री-पशु-पडक युक्त जो स्थान । 'सेवन करने वाले मुनि के ब्रह्मचर्य व्रत मे पहचान ॥ ८ ॥ शका काक्षा' 'विचिकित्सा होती या होता सयम-भेद । यो उन्माद व चिरकालिक रोगातको से होता खेद ॥ ॥ या कि केवली -कथित धर्म से हो जाता वह भ्रष्ट स्वत । | स्त्री-पशु-पडक युंक्त स्थान का सेवन न करे भिक्षु प्रत. ॥ १० ॥ 1 जो कि स्त्रियो के बीच न करता कथा, वही निर्ग्रन्थ महान । J यह क्यो ? तब आचार्य कह रहे इससे ब्रह्मचर्य मे जान ॥ ११॥ शका काक्षा विचिकित्सा होती या होता सयम-नाश । या उन्माद व चिरकालिक रोगातको से पाता त्रास ॥१२॥ $ ܐ
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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