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________________ इस प्रकार सुन अर्थ हेतु कारण से प्रेरित हुए अहा ०६ : नमि प्रव्रज्या इस प्रकार सुन अर्थ हेतु कारण से प्रेरित हुए अहा ! देवराज ने नमि राजर्षि-प्रवरं से फिर इस भाति कहा ।।२७।। प्राण लुटेरो, गिरहकटो, बटमारो, चोरो का निग्रह कर। । __ शांति स्थापना कर पुरं मे फिर मुनि बन जाना हे क्षत्रियवर ॥२८॥ सुनकर के यह अर्थ हेतु कारण से प्रेरित 'हए अहा । - नमि राजर्षि-प्रवर ने देवराज से फिर इस भाँति कहा ॥२६॥ मनुजो द्वारा बहुधा मिथ्या दण्ड प्रयोग किया जाता। निर्दोषी पकडे जाते अपराधी छूट यहाँ जाता ॥३०॥ इस प्रकार सुन अर्थ हेतु कारण से प्रेरित हुए अहा । 1 'देवराज ने नमि राषि-प्रवर से फिर इस भाति कहा ॥३१॥ जो झुकते न आपके आगे उन राजानो को नरवर! अपने वश मे करके क्षत्रिय ! मुनि बन जाना तदनन्तर ॥३२॥ सुनकर के यह अर्थ हेतु कारण से प्रेरित हुए अहा ! नमि राजर्षि-प्रवर ने देवराज से फिर इस भाँति कहा ॥३३॥ दुर्जय सगर मे दश लाख भटो को जो लेता है जीत। । - उससे भी उसकी है परम विजय जो खुद को लेता जीत ॥३४॥ आत्मा से ही कर संगर इन बाह्य रणो से है क्या लाभ? आत्मा से ही आत्म-विजय कर प्राणी पाता सुख अमिताभा॥३५॥ पाच इन्द्रिया क्रोध मान माया व लोभ मन हैं दुर्जेय ! आत्म-विजय होने पर सर्व विजित हो जाते हैं यह ज्ञेय ॥३६।। इस प्रकार सुन अर्थ हेतु कारण से प्रेरित हुए अहा ! देवराज ने नमि राजर्षि-प्रवर से फिर इस भांति कहा ॥३७॥ प्रचुर यज्ञ कर श्रमण ब्राह्मणो को प्रिय भोजन खूब कराकर। दान भोग कर यज्ञ विहित कर मुनि बन जाना फिर क्षत्रियवर ॥३८॥ सुनकर के यह अर्थ हेतु कारण से प्रेरित हुए अहाँ । । । नमि राषि-प्रवर ने देवराज से फिर इस भॉति कहा ॥३९॥ जो दश लाख'धेनुओं का प्रति मास दान देता द्विज-शेखर । । 'उसके हित भी संयम ही शुभ है . ले वह कुछ भी दे, नर ॥४०॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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