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________________ विगय-ताण अणाह परिमिल्लिर-गुरु-नीसास (७६६) समासना बे घटको विच्छिन्न थया. होय तेवां चरणांत : अने चरणादि स्थानो तो संख्याबंध छे * .. ... .. .. .. . 'सणतुकुमारचरिय'नी अपभ्रंश भाषा 'सणतुकुमारचरिय'नो अपभ्रंश उत्तरकालीन होवाथी नवमीदसमी शतादीना स्वयंभू , पुष्पदंत वगेरेना अपभ्रंशथी केटलीक बाबतमां जुदो पड़े. छे. मोटे भागे तो हेमचन्द्रे नो धेली अपभ्रंशनी लाक्षणिकताओ तेमां देखाय छे. पण ते उपरांत पण, केटलांक नवां तत्त्वो आपणे तारवी शकीए छीए. गुजरात प्रदेशनी तत्कालीन लोकभाषाना प्रभावने आ 'नवां' तत्त्वो माटे जवाबदार गणी. शकाय, अहीं हरिभद्रना अपभ्रंशना स्वरूपनो परिचय आपवानी दृष्टिए ज. केटलांक ध्यानपात्र रूपो भने प्रयोगो नो ध्यां छे. ..". :: .. अपभ्रंशमा जे विशिष्टपणे अपभ्रंश रूपो होय तेमनी साथोसाथ विशिष्टपणे प्राकृत (महाराष्ट्री) रूपो पण ठीक ठीक वपरोतां. ए दृष्टिए अपभ्रंश एक मिश्र भाषा गणाय, प्राकृत रूपोने वापरवानां कारणोमां छंद, प्रास, अनुप्रास वगेरे गणावी शकाय. अपभ्रंश व्याकरणमा प्राकृत रूपोने जुदां तारवीने दर्शाववां जोईए. .... हरिभद्रना. अपभ्रंशमां केटलांक रूपो मान्य अपभ्रंश रूपोथी आगळ वधेलां छे-एटले के तुलनाए तेमने अर्वाचीन गणी शकाय तेम छे. ते तत्कालीन लोकभाषाना प्रभावना द्योतक छे. तेमने पण अलग पाडवां जोईए. जेम के पहेलांना अपभ्रंशमां मळतां अंते ओकारवाळां रूपो अहीं उकारवाळां छे, अंते अनुनासिकवाळां रूपो कचित अनुनासिक विनानां देखाय छे, अंत्य उकारने स्थाने कयांक अकार मळे छे, संयुक्त व्यंजन कोईक वार एकवडो थयेलो छे, तो एकबे दाखलामा हकार लुप्त थयेलो छे. .. नामिक रूपाख्यान .... 'अपभ्रंश'मां बधां नामिक अंगो (आमां संज्ञा, विशेषण अने सर्वनाम होय तेवां अंगोनो समावेश. थाय छे) ह्रस्व-स्वरांत होय छे. . आकारांत, ईकारांत के ऊकारांत अंगो प्राकृतमाथी लीधेला छे..... * रहाछंदना स्वरूप माटे जुओ, 'स्वयम्भूच्छंद' (वेलणकर सम्पादित) ५, ८-११; 'छंदोन. शासन' (वेलणकर-सम्पादित) ५, १५-२३; 'संदेशरासक' (मुनि जिनविजय सम्पादित) भूमिका पृ.६६-६८.
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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