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________________ सनत्कुमारचरित १०१ जांघ लांबी हती, सुललित चमत्कृत पुलित अने वल्गित गतिओ ए निर्विघ्ने करी । शकतो हतो (५२९), तेना सर्वांगे वन, मरकत, पुलक, वैडूर्य, चंद्रकान्त, सूर्यकान्त, इंद्रकान्त वगेरे रत्नोथी चमकतां आभरणोनी शोभा हती. 'खरेखर पोताना गुणोथी आ आखा जगतने पण ओळगी जई शके तेम छे ए चोक्कस बात छे.” (५३०) ए प्रमाणे विचारीने, ते जलधिकल्लोल नामना उत्तम अश्व पर चढीने, त्यां आवी पहोचेला अनेक राजकुमारोनी समक्ष कुमारे हर्षमां आवीने कडं, "चालो जोईए, घोडदोडमां कोण कोने जीते छ,” अने बीजा अनेक कुमारोना घोडा साथे कुमारे पोतानो घोडो पण वेगपूर्वक छुटो मूक्यो. (५३१). ____एटले मन अने पवनथी पण वेगीलो जलधिकल्लोल दोडतां दोडतां अर्धी क्षणमा ज धरतीनो सारो एवो भाग ओळंगी गयो. वीजा बधा राजकुमारो "ओ आवे, ओ जाय, ओ दूर क्यांये पहोंच्यो, अरे ओ देखातो पण नथी" ए प्रमाणे वधती जती चिंताना भार साथे क्यांय सुधी कुमार माटे विलापवचन बोलता रह्या. (५३२). एटले, जेने पुत्रनुं पहेलवहेलु विरहदुःख उत्पन्न थयुं छे एवो सर्व शत्रुओने कष्टकर अश्वसेन राजा पूर्वोक्त वृत्तांत सांभळीने पोतानी चतुरंग सेना साथे मानअभिमान बाजुए मूकी, करमायेला मुखकमळे, पृथ्वीना मोटा प्रदेश उपर फरी वळ्यो. (५३३). एवे . समये छत्रना दंड भांगी नाखता, वृक्षोने उखेडता, पर्वतोना सर्व शिखरो तोडता, घरो पाडता, धूळ उछाळीने धरती खोदता, जगतना लोकोनी आंखोने आंधळी करता, प्रलयपवन जेवा प्रबळ झंझावाते राजानी सेनाने छिन्न-भिन्न करी नाखी. (५३४). एवी स्थितिमां शूर राजाना पुत्रे (महेन्द्रसिंहे) महाराजाने कह्यु, 'हे महाराज, जेमा असामान्य समृद्धि प्राप्त थवानी छे तेवी भावी कार्यसिद्धिनी हुं तने निश्चयपूर्वक वधामणी आपुं छं. माटे कृपा करीने तुं पाछो वळ. केम के आ संसारमा अंधकारनो जथ्थो गमे तटलो फेलाय तो पण सूर्यकिरणो ज तेनो नाश करे छे. तने विश्वास न होय तो आकाशनी सामे जो'. (५३५). ए प्रमाणे चमत्कारयुक्त उत्तम वचनो वडे वीनवी, अश्वसेन राजाने जेमतेम करी पाछो वाळीने, शूर राजानो कुमार जे दिशामां सनत्कुमार गयो हतो ते दिशा नोंधीने ऊपडयो. बीजा बधा लोको क्रमे क्रमे पोतपोताने स्थाने पहोंची गया, त्यारे एक शूर राजानो कुमार मात्र पोताना बाहुबळनो साथ लईने पृथ्वी पर भमवा लाग्यो. (५३६). ते सरोवर, कूवा अने गुफाओमां पेसतो, पर्वतनां शिखरो उपर चडतो, वारंवार नगरोमां प्रवेशतो अने पोताना मित्रना गुणो मनमां धरीने जंगलोमां दोडादोड
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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