SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (६) पुस्तकें (धार्मिक) (७) पुंजनी प्रश्न-६ श्रावक के व्रतों में सामायिक नवमां व्रत है। फिर प्रथम पाठ को स्वी कार किये बिना ही सामायिक का अनुपालन कहां तक ठीक है ? उत्तर- श्रावक के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह बारह ही व्रत; पहले : के बाद दूसरा फिर प्रथम दो के बाद ही तीसरा व्रत, इस तरह क्रम से ग्रहण करे । भगवती सूत्र में ऐसा स्पष्ट उल्लेख है कि वारह में से कोई भी व्रत विना किसी क्रम के ४६ भांगों (तीन करण तीन योग से बनते हैं) में से किसी भी भंग से ग्रहण किया जा सकता है। प्रतिक्रमण सूत्र में भी 'अढाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्र' के पाठ में कहा है-'श्रावक एक व्रतधारी यावत् वारह व्रतधारी' दूसरी वात प्रथम से अष्टम व्रत तक तो सभी यावज्जीवन पर्यन्त होते हैं, इसलिए अगर इतनी शक्ति न हो तो नवमां व्रत जो कम से कम १ मुहुर्त का होता है वह तो आसानी से धारण किया जा सकता है । तीसरे सामायिक की साधना से राग-द्वेष घटने पर अहिंसा, सत्य आदि का पालन अासान हो सकता है। इसलिए मल व्रतों की योग्यता पाने को भी सामायिक व्रत का साधन आवश्यक है। प्रश्न-७ सामायिक में यदि लघुनीत (पेशाब) आदि करना पड़े तो क्या करना चाहिये ? उसकी क्या विधि है ? उत्तर- सामायिक में यदि पेशाब करने जाना पड़े तो दिन के समय पुंजनी और रात्रि के समय रजोहरण लेकर तथा रात्रि में वदन और सिर पर कपड़ा प्रोढ कर जाना चाहिये । जाते समय तीन वार "श्रावस्सही” बोलना चाहिये । दिन को जीवरक्षा की दृष्टि से नीचे देखकर और रात्रि के समय पूजकर जाना चाहिये । सामायिक में मूत्रघर, नाली, गटर आदि को वर्ज कर जहां खुली जमीन हो वहां पर भी जीव-जन्तु, धान्य, वीज और हरी वनस्पति न हो, वहां बैठना चाहिये। फिर शकेन्द्र महाराज की आज्ञा लेकर नीचे यतनापूर्वक दिन को देखकर व रात्रि को पूजकर लघु शंका करनी चाहिये । परठ कर तीन वार "निस्सही" २ बोलना चाहिये। फिर इच्छाकारेणं का पाठ का ध्यान करना चाहिये । इसी प्रकार यदि बड़ीनीत से निपटना पड़ जाय तो गर्म पानी या घोवन से शुचि करनी चाहिये । प्रथम तो साधक को इन क्रियाओं सामायिक - सूत्रं / ७८
SR No.010683
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendra Bafna
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1974
Total Pages81
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy