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________________ याने पाप । अर्थात् सावध का अर्थ हुया सपाप । जो भी कार्य संपाप है,. पाप क्रिया का बंध कराने वाला हो, आत्मा का पतन करने वाला है, साधक के लिये सामायिक में उन सब का त्याग आवश्यक है पर ध्यान रहे कि . त्याग पापकारी कार्यों का है न कि जीव रक्षादि निर्दोप कार्यों का। - 'सावज्ज' का एक दूसरा रूपान्तर है सावर्ण्य अर्थात् वे कार्य जो निन्दनीय हों । अतः साधक सामायिक में उन्हीं कार्यों का त्याग करता है जो निन्दनीय हैं । आत्मा को मलिन वनाने, निन्दित करने वाले कार्य कपाय हैं; अन्य कोई नहीं । अतः साधक सामायिक में उन कार्यों का जिनके मूल में कषाय भावनां निहित है, त्याग करता है । सामायिक में इन कषायों का त्याग, सामायिक दशा को प्राप्त करने की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण कदम है। __ 'जावनियमं पज्जुवासामि दुबिंह तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा' आदि शब्द सामायिक की प्रतिज्ञा में किये गये त्याग की अवधि व सीमा के परिचायक हैं। हम यहां जिस सामायिक की बात कर रहे हैं, वह श्रावक की देशविरति सामायिक है न कि श्रमण की सर्वविरतिः सामायिक । श्रावक को सावधयोग का त्याग तभी तक है जब तक कि . उसके नियम है। पर इसका यह तात्पर्य तो कदापि नहीं समझना चाहिए कि नियम की अवधि के उपरांत वह पाप कार्य करने को उन्मुक्त है। सामायिक शब्द का प्राशय व उद्देश्य संकीर्ण नहीं है। यह तो एक विस्तृत साधना है। जीवन में, दैनिक व्यवहार में समत्व की प्राप्ति ही इस साधना का उद्देश्य है, यह सामायिक के साधकों को स्पष्ट कर लेना चाहिये ।। श्रावक की सामायिक छः कोटि के त्याग वाली है। अर्थात वह दो करण तीन योग से त्याग करता है। उसे मन, वचन व काया से पाप करने व कराने का त्याग है । अनुमोदन का श्रावक को त्याग नहीं है। मानवमानस में प्रश्न उठ सकता है कि भला वह कैसी साधना है जिसमें साधक को पापकारी कार्यों के समर्थन, अनुमोदन की छूट है । यह साधना. है या साधना का उपहास है। श्रमण निर्गन्यों ने स्पष्ट किया-अय भोले . साधकों ! यहां अनुमोदन को त्याग से अलग रखना किसी छूट की लिहाज से नहीं, वरन् प्रतिज्ञा संरक्षण की दृष्टि से है। श्रावक यद्यपि साधना पथ का पथिक है तथापि वह गृहस्थ की भूमिका का प्राणी है। सामायिक में यद्यपि वह सावध योग का त्याग करता है पर ममता का सूक्ष्म तार जो आत्मा से बंधा रहता है, वह अभी नहीं कट पाया । इसलिये सामायिक की प्रतिज्ञा में अनुमोदन का भाग खुला रखा गया है। इसका कोई विपरीत आशय लेना भूल भरा होगा। सामायिक-सूत्र /४६
SR No.010683
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendra Bafna
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1974
Total Pages81
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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