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________________ उत्तर प्रश्न-६ कायोत्सर्ग प्रतिज्ञा द्वारा साधक 'अप्पाणं बोसिरामि' अर्थात् 'आत्मा को ___ वोसिराता हूँ ऐसा उच्चारण करता है, यह कैसे ? यद्यपि 'अप्पाणं वोसिरामि' का शाब्दिक अर्थ आत्मा को वोसिराना-छोड़ना है, पर यहां इसका सही प्राशय दूसरा है। यात्मा को छोड़नां कैसे सम्भव है ? प्रथम तो शरीर की यह शक्ति नहीं कि वह यांत्मां को छोड़ दे, क्योंकि वह स्वयं आत्मा के अधीन है, अात्मा का चोला मात्र है। थोड़ी देर के लिए यह मान भी लें कि आत्मा को छोड़ा जा सकता है तो प्रश्न होगा कि आत्मा ही नहीं तो फिर इस शरीर में रह ही क्या जायेगा। जान, दर्शन व चारित्र का धनी पंछी तो उड़ गया फिर अवशेष पिंजरा मात्र क्या करेगा? स्पष्ट है कि 'अप्पारणं वोसिरामि' का ऐसा संकुचित प्राशय लगाना निरी भ्रान्ति है । आत्मा से यहां तात्पर्य पापमय आत्मा से, विकारों से या देह ममता से है। साधक इसको त्याग कर अपने आपको इनसे अलग कर सद्प्रवृत्तियों में, साधना मार्ग में लगा देता है । यही इसका संही अभिप्राय है। प्रश्न-७ कायोत्सर्ग के क्या उद्देश्य हैं ? ...... उतर- इस सूत्र के अनुसार कायोत्सर्ग के पांच उद्देश्य बतलाये गये हैं जो निम्न हैं(१) ग्रात्मा को उत्कृष्ट बनाना। (२) प्रायश्चित करना। . . ... .... (३) विशेष शुद्धि करना। (४) आत्मा को शल्य रहित वनाना। (५) पाप कर्मों का नाश करना।
SR No.010683
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendra Bafna
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1974
Total Pages81
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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