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________________ अर्थात् रहे हुए । अरिहंत, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और साधु, साधारण संसारी जीवों से ऊंचे स्थान पर रहे हुए हैं, इसलिये वे परमेष्ठी... कहलाते हैं। इनमें अरिहंत व सिद्ध देव हैं और प्राचार्य, उपाध्याय, साधु ये तीन गुरु हैं। ___पंच परमेष्ठी का नमन आत्मा को कलिमल से दूर कर पवित्र करता है । जिस व्यक्ति के मन में सदा नवकार मंत्र के उदात्त भाव का चिन्तन चलता रहता है, उसका अहित संसार में कौन कर सकता है। इतिहास साक्षी है कि इस महान् मंत्र के स्मरण से सेठ सुदर्शन को शूली का सिंहासन बन गया, भयंकर विपधर सर्प पुष्पमाला में परिगात हो गया। वस्तुतः नवकार मंत्र इहलोक एवं परलोक सर्वत्र समस्त सुखों का मूल है। . नवकार मंत्र विश्व के समस्त मंगलों में सर्वश्रेष्ठ है। यह द्रव्य मंगल नहीं वरन् भाव मंगल है। दधि, अक्षत, गुड़ आदि द्रव्य मंगल कभी अमंगल भी बन सकते हैं, पर नवकार मंत्र कभी अमंगल नहीं हो सकता। यह परमोत्कृष्ट मंगल, शान्तिप्रदाता, कल्याणकारी एवं भक्तिरस में प्राप्लावित . . करने वाला है। नवकार मंत्र यह प्रमाणित करता है कि जैन धर्म संप्रदायवाद व जाति- . वाद से परे होकर सर्वथा गुरणवादी धर्म है । अतः इसके बाराव्य मंत्र में अरिहंत और सिद्ध शब्दों का प्रयोग है; ऋषभ, शांति, पार्श्व या महावीर जैसे किसी व्यक्ति विशेष का नहीं। जैसा कि अन्यत्र मिलता है। जो भी महान् आत्मा कर्म शत्रुओं को पराजित व विनष्ट कर इन उत्कृष्ट पदों को प्राप्त करले, वही अरिहंत और सिद्ध अर्थात् हमारे परमपूजनीय महामहिम देव हैं । इसी प्रकार प्राचार्य, उपाध्याय व साधु का उल्लेख करते हुए भी किसी व्यक्ति विशेष या सम्प्रदाय विशेष के नाम का वर्णन नहीं है वरन् जो भी महापुरुप इन पदों के लिए आवश्यक गुणों से युक्त हों, वे देव और गुरु पद के योग्य एवं वंदनीय हैं। इस मंत्र में पांच पद-देव गुरु रूप गुणी और ज्ञानादि चार गुण, यों कूल नवपद की आराधना की गयी है। इन नव की पाराधना सर्वदा कल्याणकारी है। नव पद का आराधक यह मंत्र हमें नौ के अंक का शुभ सन्देश भी देता है। जिस प्रकार के अंक को चाहे किसी भी संख्या से.. गुणा किया जाय, गुणनफल का योग ६ ही रहता है। इसी प्रकार यह मंत्र भी अपने पाराधकों को सदा समभाव का यह अमर सन्देश देता है कि "दुःखे सुखे वैरिणि बंधुवर्ग, योगे वियोगे भवने वने वा। निराकृताऽशेष ममत्व वुद्ध, समं मनो मेऽस्तु सदाऽहि नाय ।।' सामायिक - सूत्र /१०
SR No.010683
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendra Bafna
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1974
Total Pages81
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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