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________________ उहते अवश्यम्' इस विग्रह में 'उन्ह' धातु से आवश्यक अर्थ में 'णिनि' प्रत्यय हुआ है । तदनन्तर 'डी' प्रत्यय करने से 'ऊहिनी' शब्द निष्पन्न होता है । उसका 'अ' शब्द के साथ 'साधनंकृता' इस सूत्र से समास होता है । यह शब्द सेना के कैप्यट की उक्त व्याख्या को ही विस्तृत करते हुए नागेश कहते हैं - 'उह' धातु वहन् अर्थ में है ।' 'अक्ष' शब्द 'रथावयव' को कहते हैं । अड्ग रथ तुरगादि का भी उपलक्षण है । अक्षान् = रथतुरगादीनि सेवा प्रति उहते प्रापयति या सां अक्षौहिणी इस प्रकार सेना विशेष यह शब्द रूढ है । आवश्यक अर्थ द्योत्य रहने पर उपपद के अभाव में यहाँ 'णिनि' हुआ है । अतः यहाँ उपपद समाप्त न हो करके 'साधनं कृता' इस सूत्र से समाप्त किया गया है । 7 श्रीमान् हरदत्ते ने भी इसी प्रकार से इस शब्द की व्युत्पत्ति की है । हरदत्त के मत में यह विशेषता है कि 'अक्षः उहते अवश्यं इस विग्रह में तृतीयान्त पूर्वपद समास स्वीकृत किया है । कैयूयट नागेशादि ने अज्ञान् ऊहते' इस विग्रह में 'द्वितीयान्त पूर्वपद समास किया है। भट्टोजी दीक्षित ने सिद्धान्त कौमुदी में, दूसरा ही ढंग अपनाया है उनके अनुसार 'उहः अस्याम् अस्ति' इस विग्रह में 'उह शब्द से मत्वर्थीय 'शिनि' प्रत्यय करके और 'ङीप् ' प्रत्यय करके 'ऊहिनी' शब्द , 1. महाभाष्य प्रदीपोद्योत 6/1/89. 2. अक्षरह तेऽवश्य मिति आवश्यके णिनिः, 'साधकं कृता' इति समासः । पदमञ्जरी, 6/1/89. 3. प्रौढ मनोरमा अच्सन्धि प्रकरणम्, पृष्ठ 161.
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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