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________________ ग्रन्थानुसार होने लगा। इसी कारण सूत्रपाठ क्रमानुसारी पठन-पाठन धीरे-धीरे उच्छिन्न हो गया। अनेक वैयाकरणों ने पाणिनीय व्याकरण पर प्रक्रिया ग्रन्थ लिखे हैं। उनमें से प्रधान ग्रन्धकारों का वर्णन आगे किया जाता है - 1. धर्मकीर्ति ।सं0 1140 वि0 के लगभगा। अष्टाध्यायी पर जितने प्रक्रिया ग्रन्थ लिखे गये, उनमें सबसे प्राचीन ग्रन्थ 'रूपावतार' इस समय उपलब्ध होता है। इस ग्रन्थ का लेखाक बौद्ध विद्वान् धर्मकीर्ति है । धर्मकीर्ति ने अष्टाध्यायी के प्रत्येक प्रकरणों के उपयोगी सूत्रों का संकलन करके रचना की है। रूपावतार' का काल वि0सं0 1140 के लगभग माना जाता है । 'रूपावतार' पर अनेक टीकाग्रन्ध भी लिखे गए । 2. रामचन्द्र ।।450 वि0 लगभग। रामचन्द्र ने पाणिनीय व्याकरण पर 'प्रक्रिया कौमुदी' नाम का ग्रन्थ लिखा । यह धर्मकीर्ति विरचित 'रूपावतार' से बड़ा है । परन्तु इसमें अष्टाध्यायी के समस्त सूत्रों का निर्देश नहीं है। पाणिनीय व्याकरणशास्त्र के जिज्ञासु व्यक्तियों के लिए इस ग्रन्थ की रचना हुई है। इस ग्रन्ध का मुख्य प्रयोजन प्रक्रिया ज्ञान कराना है। . रामचन्द्राचार्य का वंश शेष वंश कहलाता है। शेष वंश व्याकरण ज्ञान के लिए अत्यन्त प्रसिद्ध रहा है। रामचन्द्र के पिता का नाम 'कृष्णाचार्य' था । . रामचन्द्र के पुत्र 'नृसिंह' ने धर्मतत्त्वालोक के आरम्भ में रामचन्द्र को आठ व्याकरणों
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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