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________________ में ही इस कात्यायन को यज्ञ विद्याविचक्षण भी कहा है, और उसके व र रुचि नामक पुत्र का उल्लेख किया है ।' याज्ञवल्क्य-पुत्र कात्यायन ने ही श्रौत, गृह्य, धर्म और शुक्ल यजुः पार्षत आदि सूत्र ग्रन्थों की रचना की है। यह कात्यायन को शिक पक्ष का है । इसने वाजसनेयों के आदित्यायन को छोड़कर अद्गिरसायन स्वीकार कर लिया था। वह स्वयं प्रतिज्ञा परिशिष्ट में लिखाता है - एवं वाजसनेयानामडिग्रता वर्णानां तो हं कौशिकपक्षः शिष्यः पार्षदः प चटासु तत्तच्छाखासु साधीयक्रमः ।' नागेशा म के मतानुसार कात्यायन पाणिनि का साक्षात् शिष्य है । कात्यायन दक्षिणात्य का निवासी था । यदि कात्यायन पाणिनि का शिष्य था तो वार्तिककार पाणिनि से कुछ उत्तरवर्ती होगा या पाणिनि का समकालीन होगा । अतः वार्तिककार का त्यायन का काल विक्रम से लगभग 2900-3000 वर्ष पूर्व है। वार्तिक पाठ - कात्यायन का वार्तिक पाठ पाणिनीय व्याकरण का एक अत्यन्त महत्त्व पूर्ण अइंग है। इसके बिना पाणितीय व्याकरण अधूरा रहता है । पत जलि ने कात्यायनीय वार्तिकों के आधार पर अपना महाभाष्य रचा है। कात्यायन का 1. कात्यायनाभिधं च यज्ञविधाविचक्षणम् । पुत्रो वररुचिर्यस्य बभूव गुणसागरः । ___30 131, लोक 48, 49. 2. वाजसनेयों के दो अयन हैं - दयान्येव यचूंषि आदित्यानामगिरसानां च । प्रतितासूत्र कण्डिका 6, सूत्र - 3. प्रतिक्षापरिशिष्ट, अण्णाशास्त्री द्वारा प्रकागित, कण्डिका 31, सूत्र 5.
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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