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________________ 10 आचार्य चारायण के द्वारा लिखित किसी शास्त्र का स्पष्ट निर्देशक कोई वचन उपलब्ध नहीं हुआ है । लौगाक्षि-गृह्य के व्याख्याता देवपाल ने 5/1 की टीका में चारायण अपरनाम चारायणि का एक सूत्र और उसकी व्याख्या उद्धृत किया है वह इस प्रकार है - तथा च चारायणि सूत्रम् - "पुस्कृतेच्छयो: ' इति । पुरु शब्द: कृताब्दश्च लुप्यते यथासंख्यं छे । परतः । पुरुच्छदन पुच्छम् , कृतस्य दनं विनाशनं कृच्छम्' इति । महाभाष्य' में चारायण को वैयाकरण पाणिनि और रोदि के साथ स्मरण किया है। अतः चारायण अवश्य व्याकरण प्रवक्ता रहा होगा । वैयाकरण निकाय में काशकृतन को व्याकरण प्रवक्ता होना प्रसिद्ध है । महाभाष्य के प्रथम महिनक के अन्त में आपिशाल और पाणिनीय शब्दानुशासनों के सा काशकृतस्न शब्दानुशासन का उल्लेख मिलता है । . आचार्य शन्तनु ने साडगपूर्ण व्याकरणशास्त्र का प्रवचन किया था । सम्प्रति उपलभ्यमान फ्टि सूत्र उसी शास्त्र का एक देश है । - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - 1. महाभाष्य 1/1/13. 2. पाणिनिना प्रोक्तं पाणिनीयम् आपिशलम् काशकृत्नम् इति ।
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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