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________________ 156 'उपपद प्रथमान्त' का 'समर्थ सुबन्त' के साथ समास विधान होने से 'तियन्त' के साथ समाप्त होने की सम्भावना समाप्त हो जाती है । अत: इस सूत्र में 'अतिग्रहण' जो 'तियन्त' के साथ समाप्त की 'व्यावृत्ति के लिए दिया गया है वह व्यर्थ हो जाएगा। अत: वही व्यर्थ होकर इस परिभाषा का ज्ञापन किया कि 'गति कारक' तथा 'उपपद' का 'कृदन्त' के साथ में जो समाप्त हो वह 'सुप्' की उत्पत्ति से पूर्व ही हो । अत: 'गति कारक' तथा 'उपपद' का 'समर्थ कृदन्त' ही के साथ समाप्त होना निश्चित हुआ । इसका पल हुआ कि 'मा भवान् भूत्' इस प्रयोग में 'मा डि. नुड.' सूत्र से 'माड.' 'अव्यय उपपद' रहते हुए 'लुइ. लकार भू धातु से हुआ है । यदि 'माड.' का 'तियन्त' के साथ समाप्त हो जाता तो 'भवान्' मा भूत्' ऐसा ही प्रयोग होता, जो नहीं होना चाहिए । 'अतिड. ग्रहण' के द्वारा 'सुपा पद' को 'अनुवृत्ति' रेक जाने से भाष्यकार के द्वारा ज्ञापित इस वचन से जो उदाहरण सम्पन्न हुए हैं वे भाष्यादि ग्रन्थों में दिखलाये गये हैं। उनके प्रदर्शन के पहले भाष्यकार ने इस परिभाषा के ज्ञपकों की जो पूर्ति की है वह इस प्रकार है । उन्होंने 'कुप्तिप्राद कुदति प्रादयः । इस सूत्र में युग-विभाग के द्वारा दो स्वरूप दिखलाया है - 1. 'कुन्द कुप् प्रादयः ' तथा 2. 'गतिः' इसी दूसरे प्रयोग में 'उपपद मतिड.. जो अग्रिम' सूत्र है उससे 'अतिड.' ग्रहण का 'अपकर्ष' करके 'गतिः समर्थन ' सह समयते अतिगत चायं समासः ' ऐसा अर्थ किये हैं जिसका भाव है कि 'गति संज्ञक' 1. अष्टाध्यायी 2/2/18.
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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