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________________ 128 कास्यनेकाच आम वक्तव्यः । इस वार्तिक को भाष्यकार पत जालि ने 'कास्प्रत्ययादाममन्त्रे लिटि 2 पाणिनि सूत्र से वचन रूप से पढ़ा है जिसका प्रकार निम्मरीति से है । सर्वप्रथम भाष्यकार ने 'चकासां चकार' प्रयोग की सिद्धि के लिये सूत्र छक 'कास' इस पद के स्थान पर 'चकास' पद के पाठ की आशंका की, परन्तु, 'कासा चक्रे, के सिद्धि के लिए 'कास' इस आनुपूर्वी का पाठ भी अनिवार्य रूप से स्वीकार किया । पुनः भाष्यकार ने 'यथान्यासमेवास्तु' यह कहकर 'चकासांचकार प्रयोग की असिदि को तादवस्थ्य' रूप से प्रतिपादित किया - यदि - 'चकास्' 'क' कास' से कार्य की निष्पत्ति मानी जाय, तो नहीं 'कास' पद आनुपूर्टयवच्छिन्न विषयता प्रयोजक है । अतः 'अर्थवदग्रहणे नानर्थकस्य” परिभाषा की प्रवृत्ति होने से स्वार्थ विशिष्ट 'कास्' शब्द ही उददेश्य कोटि में उपादेय होगा, अतः 'कास' इस स्वतन्त्र शब्द से 'चकाप्स' E क काप्त का ग्रहण नहीं होगा । अतः 'च कासांचकार' 'चुलुम्माचकार', 'दरिद्रांचकार' इत्यादि अनेक प्रयोग के सिद्धि के लिये भाष्यकार ने गले पतित इस वार्तिक को वचन रूप से पढ़ा है । 'कास्यनेकाच आम् वक्तव्यः' इति । इसी भाष्यमत में ही कैय्यट तथा नागेश ने प्रदीप और उद्योत के माध्यम से अपने मत को समाहित किया है और अन्य Cीका कार भी इसी मत का समर्थन करते हैं । 1. लघु सिद्धान्त को मुदी, भ्वादि प्रकरणम्, पृष्ठ 437. 2. अष्टाध्यायी, 3/1/35. 3. परिमायेन्द्र० 14, प्रथम तन्त्र.
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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