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________________ 120 'त्यदादीनामः ' इस सूत्र से 'अ त्व' करने पर 'एनम्', एनौ, एनान्', 'एनेन, एनयो: ' इत्यादि इष्ट रूप होता है । 'येन न प्राप्ति' इस न्याय 'त्पवादिनाम: 'इसका यह सूत्र अपवाद हो जाएगा। अतः 'एनत्' आदेश प्रवृत्ति के अनन्तर 'त्यदादय त्व' नहीं हो सकेगा। ऐसी शंका नहीं करनी चाहिए क्योंकि 'द्वितीया टोप्स' इत्यादि सूत्र में विषय सप्तमी मान लेने से उक्त दोष निरस्त हो जाता है। विष्य सप्तमी पक्षा में द्वितीयादि के उत्पत्ति के पूर्व आदेश प्रवृत्त हो जाता है। उस समय 'त्यदादीनाम:' की प्रवृत्ति नहीं होती है । इस प्रकार यह सूत्र 'त्यदादय त्व' का अपवाद नहीं है। सर्वत्र 'एनत्' आदेश के विधान करने पर यह शंका होती है कि नपुंसक द्वितीया के एकवचन से अतिरिक्त स्था पर उसके चरितार्थ हो जाने से नपुंसक द्वितीया के एकवचन में 'एनत्' आदेशा विधान सामथ्यात् 'न लुमताडत्य' इस सूत्र के प्रत्यय लक्षण के प्रतिषेध हो जाने से 'एनत्' आदेश प्राप्त नहीं हो सकता है क्योंकि 'एनत्' आदेश के अन्यत्र चरितार्थ हो जाने से नपुंसक द्वितीया के एकवचन के विधान सामर्थ्यात् 'न लुमताडस्य' इस निषेध को रोका नहीं जा सकता है । उपर्युक्त शंका का समाधान 'एनत्' में वकारोच्चारण सामथ्यात्' हो जाता है । वह 'तकारोच्चारण नपुंसक द्वितीया के एकवचन में ही सार्थक होता है । क्योंकि वहाँ विभक्ति का 'लुक' हो जाने से 'त्यदादिनाम: ' की प्राप्ति न हो पाती। वहाँ भी प्रत्यय लक्षण के निषेध हो जाने से 'एनत्' देश की यदि प्रवृत्ति नहीं होगी तो 'तकारोच्चारण' ही व्यर्थ हो जाएगा। इस प्रकार
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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