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________________ |18 नहीं हो पाता है। उसका विकल्प से विधान किया जाता है। इस प्रकार 'अनड.' और 'न लोप' दोनों विषय में यह वार्तिक 'अप्राप्त विभाषा 'है' । 'अनइ.' होने पर न लोप पक्ष में हे उशनस् यह अदन्त रूप होता है । 'न लोपाभाव पक्षा में 'हे उशनन् ' यह नकारान्त रूप होता है । अनड. के अभाव पक्ष में 'हे उपनत ' यह सकारान्त रूप होता है । सकार के 'हत्व' और विसर्ग होने पर 'हे उशन: ' यह प्ररिनिष्ठित रूप होता है । इसी तथ्य को उक्त प्रलोक वार्तिक में कहा गया है । भाष्य में यह वार्तिक कहीं नहीं पढ़ा गया है । इसीलिए कुछ इसको अप्रमाणिक कहते हैं। नागेश ने भी भाष्य में अनुक्त होने के कारण इस वार्तिक को प्रामाणिक नहीं माना है । अन्वादेशे नपुंस के एनदव क्तव्यः 'द्वितीया टो: स्वेनः' इस सूत्र के भाष्य में यह वार्तिक पढ़ा गया है । वहाँ 'एनदिति नपुंस कैक वचने' इस रूप से वार्तिक पढ़ा गया है । नपुंसक लिंग में 'न्विादेश' के विषय में 'इदं' और 'रतद' के स्थान में एक्वचन परे 'एनद् ' आदेश कहना चाहिए । यह वार्तिक का अर्थ है । उक्त सूत्र में 1. अष्टाध्यायी, 7/2/107. 2. लच्च सिद्धान्त को मुदी, हलन्त नपुंसकलिंग प्रकरणम्, पृष्ठ 346. 3. अष्टाध्यायी, 2*4/34.
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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