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________________ 116 व्यवस्था करनी चाहिए । उत्तर व्याख्यान के अनुसार 'अन्वादेश' में भी 'सपूर्वाया: ' इस सूत्र से विकल्प से आदेश होता है क्योंकि इस सूत्र में वार्तिक । द्वारा संकोच नहीं किया जाता है । इस प्रकार 'अन्वादेश' में 'अधो ग्रामे कम लस्तौ स्वम्', 'अथो ग्रामे कम्बलस्ते स्वम्' ये दोनों प्रयोग साधु है । यह प्रदीप और उद्योत में स्पष्ट है । 'अन्वादेश' अनुकथन को कहते हैं जैसा कि न्या कार ने कहा है । 'आदेश' कथन को कहते हैं तथा 'अन्वादेश' अनुकथन को कहते हैं। दीक्षिातजी ने इसी अर्थी को विषद किया है। उनका कथन है कि किसी कार्य को करने के लिए 'उपान्त' को कार्यान्तर विधान के लिए पुन: उपादान करना 'अन्वादेश' कहलाता है। जैसे - 'इसने व्याकरण पढ़ लिया है' इस को साहित्य पढ़ाइये' इत्यादि । यह वार्तिक भाष्यरीति से वाचनिक है । न्यासकार ने इसे व्याख्यान सिद्ध कहा है। उनके अनुसार सूत्रस्थ विभाषा ग्रहण सिंहावलोकन न्याय से कठी, चतुर्थी, द्वितीयान्त, युष्मदस्मद' को 'वान्नौ आदेश के साथ सम्बन्धित होकर व्यवस्थित विकल्प का विधान करता है । इस 'अनन्वादेश' में विकल्प से तथा 'अन्वादेशा' में नित्य देशा होता है । अस्य सम्बुद्धौ वाइनइ. न लोपश्च वा वाच्यः । - __ . यह अर्थ काशिका में वाचनिक रूप से कहा गया है । 'उशनस : सम्बुद्रा अपि पक्ष अनइ, इष्यते हे उशनन् ' 'न डि. सम्बुद्धयो: ' इति न लोप का प्रति I. लघु सिद्धान्त कौमुदी, हलन्तपुल्लिंग प्रकरणम्, पृष्ठ 327.
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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