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________________ 114 एते वान्नावादय आदेश अनन्वादेशे वक्तव्या: 1 $2 के भाष्य में 'युष्मदस्मुदो इस वार्तिक का दो स पूर्वया: प्रथमाया विभाषा: इस सूत्र रन्यतरस्यामन्वादेशे' यह वार्तिक पढ़ा गया है । व्याख्यान भाष्यकार में किया है । प्रथम व्याख्यान के अनुसार यह वार्त्तिक इस सूत्र का ही शेष है । इस सूत्र से विहित विषय का निर्धारण सिद्ध हो जाता है । 'अपूर्वा प्रथमा' के परे षष्ठयादि' विभक्ति से विशिष्ट 'युष्मदस्मद' के स्थान पर 'वान्नौ' इत्यादि आदेश होते हैं और वे 'अनन्वादेश' में विकल्प से होते हैं। जैसे 'ग्रामे कम्बल स्तेस्वम्ग्रामे कम्बलस्तव स्वम्' | 'अपूर्वा य: प्रथमायाः विभाषा : विभाषा' पद से ही वार्तिक के • इस प्रकार 'अन्वादेश' में 'सपूर्वी प्रथमा से विकल्प से नहीं होता है । नित्य ही होता है । जैसे 'अथो ग्रामे कम्बलस्ते स्वम्' इन्हीं प्रयोगों को भाष्यकार ने 'अनन्वादेश' और 'अन्वादेश' में उदाहरण रूप में उपन्यस्त किया है । 'सपूर्वा: प्रथमायाः विभाषा : ' इस सूत्र के विषय में इस वार्तिक की प्रवृत्ति नहीं है । अतः वहाँ पर 'अन्वादेश' अथवा 'अनन्वादेश' में नित्य ही 'युष्मदस्मद' आदेश होगा । जैसे 'कम्बलस्ते स्वम् इति । इसके बाद 'अपर आह' इस उक्ति के अनन्तर सभी 'वान्नौ' आदेश अनन्वादेश' में विकल्प से होते हैं । यह व्याख्यानांतर भाष्यकार ने उपन्यस्त किया है । इस व्याख्या के अनुसार "सपूर्वा: प्रथमाया : 1. लघु सिद्धान्तकौमुदी, हलन्त पुल्लिंग प्रकरणम्, पृष्ठ 302. 2. अष्टाध्यायी, 8/1/26. 3. महाभाष्य, 8/1/26. - -
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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