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________________ 106 इस सूत्र से 'पर' शब्द के इष्ट वाचित्व अर्थ मान लेने से सिद्ध है । विप्रतिषेध , में जो 'पर इष्ट होता है वही ब्ली होता है । प्रकृत प्रयोग में 'नुम्' ही इष्ट है अतः वही होगा । इस प्रकार जितने भी 'विप्रतिषेध' है वे सभी विप्रतिबेधशास्त्र घट की भूत पर शब्द को इष्ट वाचक मान लेने से सूत्र से ही सिद्ध हो जाते हैं । अतएव भाष्यकार ने कहा है कि 'पूर्वविप्रतिषेध' कहना चाहिए १ नहीं कहना चाहिए । 'पर 'शब्द इष्ट वाची है । 'विप्रतिषेध' में जो इष्ट " होता है वही बली होता है । 2 डावुत्तरपदे प्रतिषेधो वक्तव्य:' +3 इस सूत्र 'न डि. सम्बुद्वयोः के भाष्य में 'न डि. सम्बुध्योश्नुत्तरपदे ' इस रूप में यह वार्त्तिक पढ़ा गया है । इसका यह अर्थ है । 'नडि. सम्बुध्यो ?' सूत्र से जो न लोप का निषेध होता है वह अनुत्तर पद में ही हो । उत्तर पद परे रहते न हो । सम्बुद्धि विषय में उत्तर पद उपलब्ध नहीं होता है । क्योंकि सम्बुदयन्त का उत्तर पद के साथ समास नहीं होता है । यद्यपि भाष्य कार ने 'सम्बुद्धि' विषय में उत्तर पद का उदाहरण राजन् वृन्दारक' ऐसा 1. अष्टाध्यायी 7/1/96. 2. लघु सिद्धान्तकौमुदी, हलन्त पुल्लिंग प्रकरणम्, पृष्ठ 264. 3. अष्टाध्यायी 8/2/8.
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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