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________________ 101 यह वार्तिक पढ़ा गया है। उसमें 'अइ. ' यह स्वरूप कथनमात्र है । 'सी' का विशेषण नहीं है क्योंकि यह विशेषण 'यश: सी' इस सूत्र से प्राप्त सी की व्यावृत्ति के लिए नहीं है क्योंकि सर्वे इत्यादि प्रयोग में 'भत्व' के अभाव होने से ही लोप की प्रसक्ति नहीं है । यह सब लझाब्देन्दु शेलार में स्पष्ट है । इस वार्तिक का भाष्यकार ने प्रत्याख्यान कर दिया है । प्रत्याख्यान इस प्रकार है - 'यस्येति च ' सूत्र में 'विभाषादिश्ये' इस सूत्र से 'सी' ग्रहण की अनुवृत्ति भाती है । 'न संयोगानमन्तात' इस सूत्र से 'न' की अनुवृत्ति आती है । तदनन्तर वाक्य भेद से सम्बन्ध होता है । 'सी' परे रहते 'यस्येति च ' से लोप नहीं होता है। इस प्रकार 'सी' परे रहते लोपा भाव सिद्ध हो जाता है | यह सब बातें भाष्य में स्पष्ट है । न्यासकार ने 'विभाषाडि. प्रयो: ' इससे विभाषा ग्रहण की अनुवृत्ति मानकर तथा व्यवस्थित विभाषा का प्रयण कर लोप का अभाव सिद्ध किया है। इस प्रकार भाष्य रीति से और न्यासरीति से भी यह वार्तिक व्याख्यान से सिद्ध अर्थ का अनुवादक है । अपूर्व वचन नहीं 1. औड. इति स्वरूप कथनं 'सर्वे ' इत्यस्य माधिकारेण सिद्धः । - लघु शाब्देन्दु शेखार, अजन्त नपुंसकलिंग प्रकरणम् । 2. महाभाष्य, 6/4/148. 3. तत्रेदं व्याख्यानम् - 'विभाषा हिश्यो: ' इत्येतत्सूत्रादिभाषाग्रहणं मण्डूकप्लु ति न्यायेनानुवर्तते । सा च व्यवस्थित विभाषा तेन चानेन सूत्रेण लोपो विधी यते यतश्चोत्तर सूत्रेण तावुभावपि न भवत इति - न्यास 6/4/148. 4. अष्टाध्यायी 6/4/136..
SR No.010682
Book TitleLaghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrita Pandey
PublisherIlahabad University
Publication Year1992
Total Pages232
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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