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________________ कुणाल। (२) तक्षशिलाके राजा कुञ्जरकर्ण पर एक लड़ाईका प्रसंग आ पड़ा। उसने सहायताके लिए अशोकके पास आमंत्रण भेजा। महाराज अशोकने इस कार्यके लिए राजकुमार कुणालको चुना। __ कुणाल सेनापति बन कर तक्षशिला जा पहुँचा । राजा कुंजरकर्णने उसे अपने प्रसादमें ठहराकर स्नेहपूर्वक अतिथिसत्कार किया। कुणाल कुछ समयके लिए. वहीं रह गया। इधर महाराज अशोक एकाएक बीमार हो गये । बीमारी ऐसी वैसी नहीं थी; बड़े बड़े वैद्योंने जवाब दे दिया । जीवनप्रदीपके शीघ्र वुझ जानेकी आशंकासे महाराज अपने उत्तराधिकारीके विषयमें चिन्ता करने लगे। उन्होंने कहा"कुणाल सब प्रकारसे योग्य है, वही मेरा राजदण्ड ग्रहण करेगा। अच्छा, उसे शीघ्र बुलानेका बन्दोबस्त किया जाय ।" यह सुनकर रानीने अपने मन-ही-मन निश्चय किया-यदि कुणाल राजा होगा तो मैं अपने अपमानका बदला कैसे चुकाऊँगी-मेरा तो सर्वनाश हो जायगा ! नहीं, मैं उसे कभी राजा न बनने दूंगी। इसके बाद वह बोली:___ "नहीं, कुमारको बुलानेकी जरूरत नहीं है। आपका रोग शीघ्र दूर हो जायगा । मैं स्वयं इसका उपाय करती हूँ।" महाराज महिषीके वचनोंसे प्रसन्न हुए। उन्हें अपने जीवनकी आशा बँध गई। रानीने अपने हाथोंसे एक ओषधि तैयार की। उससे महाराजका रोग चला गया; वे बच गये और कृतज्ञताकी दृष्टिसे रानीके मुँहकी ओर देखने लगे। स्त्रीके कुटिल नेत्रों में कुटिल हँसीकी रेखा दिख गई। वह बोली-"महाराज, आपका रोग चला गया, अब मेरी एक इच्छा पूर्ण कीजिए।" "अवश्य पूर्ण करूँगा । कहो, तुम क्या चाहती हो ?" “ मैं सात दिनके लिए महाराजका राज्य करना चाहती हूँ !" “तथास्तु ।" राज्यसिंहासन पर बैठकर महिषीने आज्ञा दी " तक्षशिलाको इसी समय दूत भेजा जाय । कुणाल एक बड़े भारी अपरा-. धमें अपराधी हुआ है । राजा कुञ्जरकर्णके पास पत्र भेजा जाय कि अपराधी कुणालके नेत्र निकलवा लिये जायँ और अन्धा कुणाल देशसे निकाल दिया जाय।
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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