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________________ फूलोंका गुच्छा। wwwwwwd देवी नाराज हो जायँगी ।" चपलाको बड़ी लज्जा मालूम हुई। युवराजके चले जानेपर उसने यवनीसे कहा-“मेलिना, तुम बड़ी बुरी हो।" ___ और एक दिनकी बात है कि चपला और मेलिनामें इस बातपर तर्कवितर्क हो रहा था कि युवराजके विश्ववर्मा और नन्दिभद्र इन दो कृपापात्रोंमें कौन अच्छा है और कौन बुरा। इतनेहीमें युवराज कुशलप्रश्न करनेके लिए आ पहुँचे । चपला पहले ही बोली-"अच्छा आप ही बतलाइए क्या नन्दिभद्र अच्छा आदमी नहीं है ? " ___ युवराज-अच्छा आदमी तो है ही, तभी तो तुम्हें प्रतिदिन पिस्ता और बदाम दिया करता है। चपला-वह पिस्ता बदाम नहीं देता, तो भी मैं उसे अच्छा आदमी समझती। मेलिना-वह अच्छा आदमी नहीं है, यह तो मैं कहती नहीं; परन्तु मेरा कथन यह है कि विश्ववर्माके समान अच्छा आदमी शायद ही कोई हो । चपला-( युवराजसे ) देखिए, विश्ववर्मा इसकी ग्रीक भाषा जानते हैं न, इसीलिए यह पक्षपात कर रही है। और एक दिनकी बात सुनिए । राजधानीसे सन्धिका प्रस्ताव आनेके पहले महाराजका एक आज्ञापत्र आया था कि विश्ववर्माको गान्धारकी ओर गुप्तचर बनकर जाना होगा। इस आज्ञाको पाकर युवराज बहुत ही चिन्तित हो रहे थे। एक दिन वे तरह तरहकी चिन्तायें कर रहे थे कि इतनेमें चपलाने आकर कहा-"मुझे एक सोनेका पदक चाहिए है।" सरला बालिकाकी प्रार्थनासे सन्तुष्ट होकर युवराजने पूछा-"किस तरहका पदक ?" चपलाने चित्र बनाकर बतला दिया कि इस आकारका । “अच्छा, तुम जाओ पदक शीघ्र ही तयार हो जायगा।" यह कहकर युवराज फिर चिन्तामग्न हो गये । चपलाको यह सा न हुआ। उसने अप्रसन्न होकर मुँह भारी कर लिया। यह देखकर युवराजको हँस आया और उन्हें उसके साथ मनोरंजक वार्तालाप करनेके लिए लाचार होना पड़ा। ६ नूतन चिन्ता। प्रसिद्ध विद्वान् बुद्धघोषने उस समय त्रिपिटककी टीका लिखी थी या नहीं यह तो निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता; परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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