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________________ ऋण-शोध । ७७ डेढ़ हजार रुपया पाकर कमलाप्रसादके मनमें अनेक तरहकी बातें आने लगीं। वह मन-ही-मन सोचा करता था कि समय आनेपर डाँकूकी स्त्रीका ऋण चुकाऊँगा। इस समय वह कहने लगा कि यही तो समय है ! मुझे तो एक हजार रुपयोंसे मतलब है। शेष पांच सौ रुपयोंसे तो सहजहीमें इस ऋणसे ऊऋण हो सकता हूँ। और इन पांच सौ रुपयोंको पाकर वह भी उस डाँकूके हाथसे हमेशाको छूट सकती है । वह अवश्य ही उसकी खरीदी हुई दासी है। इन बातोंको वह जितना ही सोचने लगा, उसकी ऋण चुकानेकी इच्छा उतनी ही प्रबल होती गई। यह बात उसके मनमें बारबार आने लगी कि यदि मैं ऐसा न करूँगा-इस ऋणको न चुकाऊँगा, तो मेरे पापकी सीमा न रहेगी। मालिकके पास एक हजार रुपये रख करके वह फिर चल दिया। अपने साथ में उसने केवल ५००) रक्खे। उसने निश्चय किया था कि ये रुपये उस स्त्रीको देकर घरकी ओर जाऊँगा और रास्तेमें जो गाँव मिलेंगे उनमें भाईकी खोज भी करता जाऊँगा । उसे विश्वास था कि भैया यहीं किसी गाँवमें गुप्तरीतिसे रहते हैं और लज्जाके मारे अपने ग्रामको नहीं लौट सकते । कमलाप्रसाद देखता है कि मेरे दुर्दिनके मेघ फट चुके हैं और सौभाग्य-सूर्य उदित हो रहा हैकेवल एक दुःख है-यदि भाईको न ले जाकर मैं माताके पास पहुँचा तो उनसे क्या कहूँगा? (४) अबकी बार वह ऐसे समय रवाना हुआ कि जिससे सूर्य अस्त होने के पहले ही उस जंगलसे पार हो जाय । परन्तु जिस समय वह डॉकूके घर पहुँचा, उस समय सूर्य अस्तोन्मुख हो रहा था—सघन वृक्षोंकी संधियोंमेंसे उसका सुनहरी प्रकाश छिटक रहा था। पक्षी अपने घोंसलोंको लौट रहे थे । समस्त वन स्निग्ध प्रकाश और कोमल कलरवसे भर रहा था । कमलाप्रसाद उस डाँकूके घर पहुँचा । वह उस स्त्रीको गुप्तरीतिसे रुपये देना चाहता है क्योंकि अगर डॉकूको विदित हो जायगा तो वह अवश्य उससे रुपये छीन लेगा। ऐसा सोच करके वह बिना कुछ कहे सुने एक ओर खड़ा होकर अपेक्षा करने लगा। दिनका प्रकाश धीरे धीरे मंद पड़ने लगा, तथा छायाके समान अंधकार क्रमशः उस घरको ग्रसित करने लगा। पक्षियोंका कलरव शान्त हो गया-चारों ओर सन्नाटा छा गया । इतनेमें उस घरमें एक.
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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