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________________ ऋण-शोध। सकता था। इस कारण वह कुछ भी न कर सका। डाँकूने उसका सब रुपया सहज ही छीन लिया और उसे एक फटा कपड़ा पहनाकर बाहर कर दिया । कमलाप्रसादने जरा भी 'ची-चपड़' नहीं की, इसलिए डॉकूको उसे जानसे मार डालनेकी कोई आवश्यकता न जान पड़ी। कमलाप्रसाद निःसहाय और सर्वस्वहीन होकर रास्तेमें खड़ा है। डॉकूने उसकी तलवार तक छीन ली है। रास्ते में जङ्गली पशुओंका भय था, इसलिए कमलाप्रसादने कातरस्वरसे कहा-'मेरा तुम सब कुछ ले चुके, ले लो; परन्तु मेरी तरवार तो मत लो, नहीं तो इस बिकट जंगलमें जंगली पशु मेरे प्राण ले लेंगे!" डाँकूको कुछ दया आगई-तलवार लेकर वह कमलाप्रसादको देने लगा। अंधकारमें तलवार चमकने लगी, यह देखकर उसने कहा-“ओह ! यह तो बिलकुल नई दिखती है । अच्छा ठहरो । मैं तुम्हें एक दूसरी तलवार ला देता हूँ। ऐसा कहके उसने घरमेंसे एक पुरानी तलवार लाकर कमलाप्रसादको दे दी। दूसरे दिन सबेरे कमलाप्रसाद उदास चित्त और मलिन मुँह किये हुए अपने मालिकके द्वारपर जा खड़ा. हुआ । लज्जा उसे मकानके भीतर नहीं जाने देती थी । बहुत दिनोंके कठिन परिश्रमसे प्राप्त किये हुए रुपयोंके जानेसे यद्यपि उसे दुःख हो रहा था, किन्तु मालिककी बात न माननेसे मेरी यह दुर्दशा हुई है यह बात उसके हृदयमें उस दुःखसे भी अधिक पीड़ा दे रही थी-अपना मुख दिखाने में उसे बहुत ही लज्जा मालूम होती थी। कुछ समय बाद मालिक मकानके बाहर आया। उसने देखा कि मलिन मुख और नीचा सिर किये हुए कमलाप्रसाद खड़ा है। उसे बड़ा विस्मय हुआ ! उसे ऐसा भास होना लगा कि मैं किसी जादूगरका खेल देख रहा हूँ। यह क्या वही कमलाप्रसाद है जो कल रातको बिदा ले कर घरको गया था ? कमलाप्रसादकी अवस्था देखकर उसे बहुत दुःख हुआ। वह जल्दीसे हाथ पकड़के उसे घरके भीतर ले गया। कमलाप्रसादने रातकी सारी घटना कह सुनाई। मालिकने उसे चुपचाप सुन लिया-उसका जरा भी तिरस्कार न किया । कमला. प्रसाद जिस तरह गतरात्रिको काम करते करते चला गया था आज सवेरे वही
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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