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________________ ६४ फूलोका गुच्छा। पानेके लिए की थी । तुम्हारा प्रेम सच्चा प्रेम है। तुम वीरपरीक्षक हो। तुमने अपना हृदय मुझे दे दिया है; यह जानकर मैं मरता हूँ। तुम्हारी शोकहारिणी पत्रिकाने मेरे इस अन्तसमयको आनन्दमय बना दिया है । आज मेरा प्रेम सार्थक हुआ।" अब मरते समय उसे प्रेमकी निशानी क्या दूँ ? अच्छा ठहरो, राजकुमारीकी प्रथम प्रणयपत्रिकाको मैंने अपने हृदयके पास जेबमें रख छोड़ा है, उसे ही तुम उसे दे देना। इतना कहकर झल्लकण्ठ पत्रिकाको निकालनेका प्रयत्न करने लगा; परंतु उसने देखा कि कटारके साथ पत्रिकाका अंश भी शरीरके भीतर घुस गया है। रक्तरंजित पत्रिकाको निकालकर झल्लकण्ठने चूम ली, और फिर उसे तथा लहूलुहान कटारको दूतके हाथमें देकर कहा-“दूत, जाओ, राजकुमारीसे कहना कि यह कटार यद्यपि मेरा जीवन समाप्त करनेवाली है, तो भी इसने मेरा बड़ा उपकार किया है । इसने तुम्हारी प्रणयपत्रिकाके अक्षर मेरे शरीरके रक्तमें सदाके लिए मिला दिये हैं। मैं इससे कृतार्थ हो गया ।" कटारके निकलते ही शरीरसे रक्तकी धारा बहने लगी । मंत्री झल्लकण्ठका शरीर शव्या पर गिर गया। __ दूतने जाकर राज्यकन्यासे सब हाल. कहा और पत्रिका तथा कटार उसे दे दी। भद्रसामा उस रक्तरंजित उपहारको देखकर रो उठी। उसकी आँखोंसे मोति. योंके समान आँसू झड़ने लगे। उसने पत्रिकाके एक अंशको अपने कोमल केशोंमें और एकको कंचुकीमें खोंस लिया । इसके बाद प्यारेके हृदयरक्तसे रँगी हुई कटारको चूमकर उसने अपने मस्तकपर रक्तका तिलक लगा लिया । वह प्यारेके अनुरागके चिह्नस्वरूप सिन्दूरकी तरह शोभा देने लगा। , जयमती। SARK आसामके इतिहासका अध्ययन करनेसे स्त्रीचरितका एक उच्च आदर्श प्राप्त होता है । शिवसागर जिलेकी प्रातःस्मरणीया रानी जयमतो सत्रहवीं शताब्दीमें सहिष्णुताका और पातिव्रत्य धर्मका जो उज्ज्वल दृष्टान्त दिखला गई है वह जगतके इतिहासमें अतुलनीय है। जयमती रानीकी अपूर्व कहानी भूतकालकी सीता
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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