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________________ अपराजिता। बसन्तने हँसकर पूछा-तो वह किस अभिप्रायसे आया है ? " वह तो विवाहसम्बन्ध जोड़नेके लिए आया है !" ." किसका? " राजकुमारी यमुनाके साथ अवन्तीके महाराजके भाईका और महाराज के साथ-" __ सुभद्रासे इससे आगे और कुछ न कहा गया । लज्जासे उसके मुँहकी बात ओठोंमें अटक रही। सुभद्राको लज्जाके कारण चुप देखकर वसन्तने हँसकर पूछा-और अवन्तीके महाराजके साथ किसका ? ___ सुभद्राके मुँहपर लज्जा झलक आई । उसने नीचा सिर करके धीरेसे कहाइस अभागिनी सुभद्राका । वसन्तने उत्साह दिखलाकर कहा-अच्छा ! तब तो बड़ी खुशीकी बात है। सुभद्रा वसन्तके उत्साहप्रकाशसे खिन्न होकर बोली-वसन्त, यह खुशीकी बात नहीं है ! वसन्त विस्मित होकर बोला—सो क्यों ? अवन्तीके राजा तो सार्वभौम राजा हैं, फिर खुशीकी बात क्यों नहीं ? । सुभद्राने दृढ़तापूर्वक कहा-अवन्तीनरेश सार्वभौम राजा हैं; परन्तु सार्वमाजस तो नहीं हैं ? " तब क्या सम्राटकी प्रार्थना व्यर्थ होगी ? " “व्यर्थ तो वैसे ही होती । यदि सम्राटके भाई यमुनाको स्वयं देखते, तो उनका आग्रह उसके लिए कदापि स्थिर न रहता और सुभद्रा तो इस राजमहलमें ऐसी अपदार्थ है कि उसे कोई पहिचानता भी नहीं है। सम्राटके चतुरसे. चतुर जासूस भी उसको ढूंढ़कर नहीं निकाल सकते। परन्तु हां, इस अन्तः. पुरमें राज्यलोलुप राजकुमारियोंकी कमी नहीं। वे राजाकी प्रार्थनाको व्यर्थ न होने देंगी।" __वसन्तने मुसकुराते हुए कहा--सुभद्रा, अव मेरा छुटकारा बहुत शीघ्र होनेवाला है । आज इस अंधकारमें हमारा तुम्हारा यह अन्तिम मिलन है। कल हजारों स्त्रियोंमेंसे तुम्हारे जिन हाथोंको देखकर मैं तुम्हें पहि फू. गु. २
SR No.010681
Book TitleFulo ka Guccha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1918
Total Pages112
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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