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________________ रवीन्द्र-कथाकुञ्ज है । यद्यपि तुम्हारे ऊपर मेरा कोई सामाजिक अधिकार नहीं है, किन्तु जिस विधाताने तुम्हारे दुःखको मेरे दुःखमें परिणत कर दिया है, उसीने उस दुःखको दूर करनेके प्रयत्न करनेका भार भी मेरे कन्धोंपर डाला है। ___"अतएव मेरी गुस्ताखी माफ करके, शुक्रवारकी सन्ध्याको ठीक सात बजे, चुपचाप पालकीमें बैठकर, यदि तुम केवल बीस मिनटके लिए मेरे डेरेपर आ जाओगी, तो मैं तुम्हारे पतिके संबंधमें बहुत ही गुप्त बातें बतलाऊँगा। यदि तुम उनपर विश्वास न करोगी और सहन कर सकोगी, तो मैं तत्सम्बन्धी प्रमाण भी तुम्हारे सामने पेश कर सकूँगा और साथ ही कुछ परामर्श भी दूंगा। मैं भगवानको साक्षी देकर अाशा करता हूँ कि उन परामर्शों के अनुसार चलनेसे तुम एक दिन अवश्य सुखी हो सकोगी। ___ "मेरा यह प्रयत्न सर्वथा निःस्वार्थ नहीं है । थोड़ी देरके लिए मैं तुम्हें अपने सम्मुख देख सकूँगा, तुम्हारी बातें सुनूँगा और तुम्हारे चरणोंके स्पर्श से अपने कमरेको चिरकालके लिए सुख-स्वममंडित बना लूँगा, यह आकांक्षा भी मेरे हृदयमें है। यदि तुम मेरा विश्वास न कर सकती हो और यदि इस सुखसे भी मुझे वंचित करना चाहती हो, तो मुझे वैसा लिख देना । मैं उसके उत्तरमें सब बातें पत्रके द्वारा ही लिख भेजूंगा। यदि पत्र लिखनेका विश्वास भी न हो, तो मेरा यह पत्र अपने पतिको दिखला देना, तब मुझे जो कुछ कहना है, वह उनसे ही कह दूंगा।"
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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