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________________ जासूस एक दिन मैंने गद्गद कण्ठसे कहा-भाई मन्मथ, मैं एक स्त्रीको बहुत ही चाहता हूँ ; परन्तु वह मेरी ओर अाँख उठाकर भी नहीं देखती। पहले तो उसने चकित होकर मेरे मुंहकी ओर देखा । इसके बाद कुछ हँसकर कहा-इस प्रकारके दुर्योग विरल नहीं हैं । कौतुकी विधाताने ऐसे तमाशे करने के लिए ही तो नर-नारीका भेद किया है। ___मैंने कहा- इस विषयमें मैं तुम्हारी सलाह और सहायता चाहता हूँ। वह दोनों देने के लिए राजी हो गया । ___ तब मैंने एक लम्बा इतिहास गढ़कर उसे सुनाया । यद्यपि उसने उसे बड़े अाग्रह और कुतूहलके लाथ सुना; परन्तु स्वयं ज्यादा बातचीत नहीं की। मेरा खयाल था कि यदि स्यारकी-विशेषतः गहित प्यारकी-बात किसीके आगे खुलकर कह दी जाय, तो उससे बहुत जल्दी मित्रता बढ़ जाती है । परन्तु वर्तमान क्षेत्रमें इसका कोई लक्षण नहीं दिखलाई दिया । छोकरा पहलेसे भी गहरी चुप्पी साधकर रह गया और उसने सारी बातें सुनकर हृदयमें रख ली। इससे उसके प्रति मेरी भक्ति और भी बढ़ गई। इधर मन्मथ प्रति दिन द्वार बन्द करके क्या किया करता है और उसका गुप्त षड्यन्त्र किस तरह कितनी दूर आगे बढ़ा है, इसका कुछ भी पता मैं न लगा सका । परन्तु इसमें ज़रा भी सन्देह नहीं कि वह आगे बढ़ रहा है। इस नवयुवकका मुख देखते ही यह मालूम हो जाता था कि वह किसी गूढ काममें लगा हुआ है और इस समय यह काम बहुत ही परिपक्क हो गया है । मैंने एक दूसरी चाबीसे उसका डेक्स खोलकर देखा, तो उसमें एक अत्यन्त दुर्बोध कविताकी पुस्तक, कालेजकी स्पीचोंके नोट्स, और घरके लोगोंकी दस पाँच महत्त्वहीन चिटियोंको छोड़कर और कुछ भी न मिला और उन चिट्टियोंसे केवल यही साबित हुआ कि घर अानेके लिए उससे बार बार प्रबल अनुरोध किया
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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