SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समाप्ति कहा जाता है कि चतुर कारीगर ऐसी सूक्ष्म तलवार बना सकता है कि उसके द्वारा किसी मनुष्य के दो टुकड़े कर देने पर भी वह नहीं जान सकता कि मेरे दो टुकड़े हो गये हैं और अन्तमें उसके हिलने डुलने पर वे दोनों खण्ड अलग अलग हो जाते हैं । विधाताकी तलवार भी ऐसी ही सूक्ष्म है। उसने मृण्मयीके बाल्य और यौवनके बीच में श्राघात किया । परन्तु वह जान नहीं सकी और आज जरा-सी ठेस लगने पर उसका बाल्य अंश यौवनसे जुदा हो गया और मृण्मयी विस्मित और व्यथित होकर देखती रह गई। ___ माताके घरका उसके सोनेका कमरा उसे अपना नहीं मालूम हुआ । वहाँ जो रहता था, वह एकाएक नहीं रहा । अब हृदयकी सारी स्मृति उस एक नये घर, नये कमरे, और नई शय्याके आसपास गुन गुन करती हुई धूमने लगी। मृण्मयीको अब कोई बाहर नहीं देख पाता। उसका खिलखिलाकर हँसना भी अब किसीको नहीं सुन पड़ता । राखाल अब उसे देखकर डरता है। खेलने कूदनेकी बात अब उसके मनमें भी नहीं आती। मृण्मयीने माँसे कहा-माँ, मुझे ससुराल पहुँचा दे। इधर बिदाके समयका पुत्रका विषादयुक्त मुख स्मरण करके अपूर्वकी माताका हृदय विदीर्ण होने लगा। उसके मन में यह बात काँटेके समान चुभने लगी कि वह क्रुद्ध होकर बहूको समधिनके घर रख गया है । ऐसी अवस्थामें एक दिन मृण्मयी सिर ढककर मलीन मुख किये हुए सासके पास आई और उसने उसके पैरोंके पास झुककर प्रणाम किया । सासने तत्काल ही उसे छातीसे लगा लिया। उसकी आँखें डबडबा आई । बातकी बातमें दोनोंका मिलन हो गया। सास अपनी बहूक मुँहकी ओर देखकर विस्मित हो रही। उसने देखा कि यह तो मृण्मयी
SR No.010680
Book TitleRavindra Katha Kunj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi, Ramchandra Varma
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1938
Total Pages199
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy